Book Title: Jindutta Charit
Author(s): Gunbhadrasuri, Tonkwala, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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सुख पूर्वक भोगों में अनुरक्त जिनदत्त की प्रथम पत्नी विमलामती के दो सुकुमार-सुन्दर पुत्र उत्पन्न हुए । प्रथम का नाम सुदत्त और द्वितीय का जयदत्त नाम घोषित हुआ तथा इन दोनों की "वसन्तलेखा" नाम की रूपवती बहिन भी हुयी। यह श्रीमती के गर्भ से जन्मी थी तथा सुप्रभ नामक पुत्र भी हुआ। पर्थात् द्वितीय पत्नी श्रीमती महादेवी ने एक कन्या और एक कुमार को जन्म दिया ।। २० ।।
सुकेतु जयकेतु च केतु गरुड़ पूर्वकम् । खगाधीश तनूजा च विजयादि मति सुताम् ॥
२१ ॥
तृतीय भार्या से सुकेतु, जयकेतु एवं गरुडकेतू नाम के तीन पुत्र रत्न हुए । यह नारी विद्याधर राजा चक्रवर्ती की पुत्री थी। प्रतः तदनुसार पराक्रमी पुण्यशाली संतान भी हुयी। इसका नाम विजयामती था। इसे तीन पुत्रों की सवित्री होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ।। २१ ॥ जयमित्रं च वसुमित्रं नृपात्मज ।
सुमित्रं
प्राप पुत्रान् तुरीयाञ्च पुत्रीं नाम्ना प्रभावतीम् ।। २२ ।।
चतुर्थ पत्नी जो चम्पापुर नरेश की पुत्री थी, ने सुमित्र, जयमित्र और वसुमित्र इन तीन पुत्रों के साथ अनन्य सुन्दरी प्रभावती कन्या प्रसव करने का सौभाग्य प्राप्त किया ।। २२ ॥
कारितश्च समस्तानां जन्म नाम परोयाः ।
तथा महोत्सव स्तेन यथा लोकः सुविस्मितः ॥ २३ ॥
जिनदत्त एवं उसके तातादि ने इन सभी का जन्मोत्सव, नामकरण संस्कार आदि क्रियाएँ महा महोत्सव पूर्वक कीं। जिससे समस्त लोक विस्मय में पड़ गये अर्थात् श्राश्चर्य चकित हुए ।। २३ ।।
एवं बद्ध यतस्तस्य
त्रिवर्गोद्दाम
पादपम् । कालः कोऽपि जगामास्य मग्नस्य सुख सागरे ॥ २४ ॥
इस प्रकार उसके त्रिवर्ग - धर्म, अर्थ और काम रूप पादप उद्दाम वृहद रूप से निर्विघ्न वृद्धिंगत हुए। सुख सागर में निमग्न इसका समय कितना किधर जा रहा है यह प्रतीत ही नहीं होता । ठीक ही है भोगों का नशा ऐसा ही होता है किन्तु धर्म ध्यान पूर्वक हो तो यह उन्मत्त नहीं बनाता। जिनदत्त भी सावधान था ॥ २४ ॥
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