Book Title: Jindutta Charit
Author(s): Gunbhadrasuri, Tonkwala, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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मुली प्रकार जानता था एफ: अफ और स्थान वरयाओं का साधारण ज्ञाता था। वह यह भी जानता था कि वचन, मन और देवसिद्धियों में सामंजस्य किस प्रकार किया जाय । चय, उप चय और मिश्र अभ्युदयों का नित्य साधन करता था ।। ३३ ।।
पिप्रिये
प्रणतानन्स सामन्तः शतधातहि ।
यथा स्वयं जगद्वन्द्य सुनोन्द्र पक्ष बन्दमे ।। ३४ ।।
अनेकों बार प्रेमाभिभूत सामन्तों के द्वारा वह नमस्कृत होता था । अर्थात् अनुराग भरे उसके सामन्त निरन्तर विनयावनत होते रहते । ऐसा प्रतीत होता मानों वह राजा निरन्तर श्रेष्ठ मुनिन्द्र वृन्दों के जगद्वन्ध चरणारविन्दों में नमस्कार करने से स्वयं भी वन्दनीय हो गया हो । अभिप्राय यह है कि राजा धर्मानुराग से भक्ति पूर्वक विश्व वन्द्य श्रेष्ठ मुनि पुंगवों को चरण वन्दना करता था। विनय से नमस्कार करता था । मानों इसी के फल स्वरूप उसके सामन्त जन उसे नमस्कार करते थे । अर्थात् वह सबका श्रद्धा और भक्ति पात्र हो गया ।। ३४ ।।
ईर्ष्या स्वभावतः स्त्रोरपांमिति मिथ्या कृतं श्रिया । मेदिनि सुख सक्तऽपि यत्तत्र रसिका स्वयम् ।। ३५ ।।
संसार में यह लोकोक्ति प्रचलित है कि स्त्रियों में स्वभाव से ईर्ष्या होती है अर्थात् एक-दूसरी का उत्कर्ष सहन नहीं कर सकतीं। किन्तु इसकी राज लक्ष्मी ने इस चर्चा को मिथ्या प्रसत्य कर दिया था । क्योंकि पृथ्वीपति के समान समस्त प्रजा वैभवशाली, आनन्द मग्न थी । सभी रसिक जन सुखानुभव करते, सन्तोष से रहते थे ।। ३५ ।।
स्वरूप सम्भवा जिग्ये यया मदम सुन्दरी ।
समभूद वल्लभा तस्य नाम्ना मदन सुन्दरी ॥ ३६ ॥
वल्लभा
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इस राजा की प्रिया मदन सुन्दरी थी । यह राजा की प्रत्यन्त - प्रिय थी । इसने अपनी रूप राशि से कामदेव की पत्नि रतिमदनसुन्दरी को भी जीत लिया था । अर्थात् मदनसुन्दरी यथा नाम तथा गुण थी ।। ३६ ।।
यस्याः सौन्दर्य मालोक्य विस्मिता सुर योषितः । नूनमद्यापि नो जाता: सनिमेष विलोचनाः ।। ३७ ।। ' इसके सौन्दर्य को देखकर नगर की समस्त नारियाँ विश्मित थी।
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