Book Title: Jindutta Charit
Author(s): Gunbhadrasuri, Tonkwala, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
रसायन सेवन सवक सुखकर होता है रोग होने पर तो कहना ही क्या है ? लम्बे समय को प्रतीक्षा के बाद पुत्र प्राप्ति असीम हर्ष को कारण क्यों नहीं होगी ? होगी ही ।। ८४ ।।
नत्य वादिन संगीत मय मायु समन्ततः । तवा इत्याधिनवाशु तदमूव पुरं तदा ।। ८५ ।।
शीन ही सेठ की प्राजानुसार चारों ओर पुत्र-जन्मोत्सव मनाया जाने लगा । यत्र-तत्र नृत्यकार नृत्य करने लगे, वादित्र बज उठे, संगीत होने लगा, कुछ ही क्षरणों में बिना प्रयास के पूरा नगर उत्सवमय हो उठा ॥ २५॥
स न कोऽपि नरस्तत्र यो नानंच भराससः । सममूखाच कोवापि यो न पूर्ण मनोरथः ॥ ६ ॥
उस समय नगरी में एक भी मनुष्य ऐसा नहीं था जो प्रानन्दविभोर न हो, न कोई याचक था जिसका मनोरथ पूर्ण नहीं हुअा हो। भावार्थ सेठ अपने सदाचार से सर्वप्रिय था, उसके हर्ष से सभी झम उठ । याचकों को किमिच्छक दान दिया । अतः सभी सफल मनोरथ हो गये ।। ८६ ।।
जात कर्म कृतं तस्य सोत्सव सफल सरः। यथाक्रम पुनश्चक्रे पूजयित्वा जिनेश्वरान् ॥ ८७ ।। जिनदसामिषा तस्य बन्धु वृध्ये समन्विताः । कृत कुत्यामवात्मानं मेनेसौ नंगमाधिपः ।। १८ ।।
जन्म होते ही उत्सव पूर्वक उस नवजात शिशु का जातकर्म किया गया । पुनः यथाक्रम से श्री जिनेश्वरों देवाधिदेव अर्हन्तों-भगवान की पूजा कर विधिवत् उस बालक का नामकरण सस्कार किया गया। सर्व बन्धू-बान्धवों को समन्वित कर पुरोहित महाराज ने शुभ लग्नादि का विचार कर उस नवजात बालक का नाम "जिनदत्त" घोषित किया और अपने को कृत-कृत्य मनोरथ अनुभव किया । अर्थात् जिनेन्द्र पूजन के दोहले के अनुमार हो यथागुण तथा नाम स्थापित कर ज्योतिषज्ञ को अत्यन्त सन्तोष प्रा ।। ८७ || ८८ ।।
वधे बन्धु पचानामानन्दं विषत परम् । उपविन्दन कलाश्चित्रं सोऽपि बाल विवाकरः ॥ ६ ॥
वह बाल रवि अपने बन्धुवर्ग रूपी कमलों को प्रफुल्लित करता हुमा २२ ।