Book Title: Jindutta Charit
Author(s): Gunbhadrasuri, Tonkwala, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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प्राप्तापि यौवनं कामा मोधास्तं सौम्य दर्शना । सेन्दु मूति रिवांकन रोगेणाति कथिता ॥ ७ ॥
यह कन्या अपने सौन्दर्य से तिलोत्तमा और रम्भा को भी तिरस्कृत करने वाली थी । पूर्ण यौवन को धारण कर चुकी थी। चन्द्रकला सी सौम्य और मूर्तिमान रति के समान सुकुमारी थी। किन्तु अशुभोदय से किसी भयङ्कर रोग से पीडित थी ।। ७ ।।
यथा यः सन्निधौ तस्याः कोपि श्वापति याति सः । यम से ततस्ता पिविलः कामयः : ॥
कारण यह था कि जो भी कोई उस कन्या के साथ रात्रि में सोता था वही मृत्यु का भाजन हो जाता था। इस कारण उसके माता-पिता आदि परिजन उससे विरक्त हो गये थे । दु:खी थे॥८॥
प्रासादे सुन्दरे साध्वी सा बहिः स्थापिता ततः । अथित श्च भूपेन पौरलोकः स गौरवम् ।। ६ ।
एक सुन्दर उच्च महल बनवा कर उसे अलग ही रख छोडा था। राजा द्वारा सभी पुर वासीयों को सूचित कर दिया गया कि कोई भी इसे निरोग कर मेरे गौरव का पात्र बने ||६||
केनापि पूर्व पापेन ममेयं देहनाजनि । मा नमामि ततो पावत् कुतोऽपि भिषजो जनाः ॥ १० ॥
किसी पाप कर्म के उदय से मेरी इस पुत्री की यह दशा हुयी है । मैं प्रयत्न पूर्वक कहीं से भी उपचार करूं इसलिए आप सब भी उचित वैद्य खोज कर लामो ॥ १० ॥
प्रति सम ततो यातु प्रत्यहं चक मानवः । वस्तु मस्या गृहे चैवं सामेने अनता खिला ॥ ११ ॥
जनता क्षुब्ध हो गई कोई उपाय न देख, सबने निर्णय किया प्रत्येक घर से एक-एक पुरुष इसे प्रदान किया जाय सभी जनता ने यही स्वीकार किया ।। ११ ।।
मथान्ये घुः समागत्य नापितेमेति भाषिता। कुमार सन्निधौ वृद्धा तबाधा अनि बारक: ॥ १२॥
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