Book Title: Jindutta Charit
Author(s): Gunbhadrasuri, Tonkwala, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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प्राप्त होता है। इसी प्रकार काम-मदन बैग से रहित मनुष्य का मुख कमल प्रसन्नता से विकसित रहता है । अभिप्राय यह है कि काम विजयी उत्तम पुरुष या महिला का प्रानन (मुख) पङ्कज ब्रह्म तेज से देदीप्यमान प्रासुर होता है उसी प्रकार धर्मात्मा के पास कीति और लक्ष्मी घोभित होती है । संसार में वस्त्रालङ्कार से प्रलंकृत रमणी जैसे शोभायमान मानी जाती है परन्तु यह यथार्थ नहीं, जो व्रतोपवासादि रूप अलङ्कार और सम्यक्त्वरूपी मणिमाला धारण करता है वही वस्तुतः सुन्दर
इति श्री गुगभद्राचार्य विरचित जिनदत्त चरित्र में पांचवां सर्ग समाप्त हुमा।
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