Book Title: Jindutta Charit
Author(s): Gunbhadrasuri, Tonkwala, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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लेख-पत्र द्वारा स्वीकृति पाते ही सेठ ने चम्पानगरी की प्रोर प्रस्थान करने का निर्णय लिया। विवाहोत्सव के अनुकूल समस्त सामग्री संचय की । बन्धु-बांधवों को आमन्त्रित कर समन्वित किया । साज-धाज के साथ पुत्र को लेकर चल दिये ।। ८७ ।।
प्राप्ताः सोऽपि ततश्चम्पा मकस्यां तर्जयन्तीं ध्यम प्रातः पुरन्दर
रिपुसंहतेः । पुरोमिव ॥ ८८ ॥
अविलम्ब जहाज चम्पा नगरी के तट पर जा पहुँचे । वह शोभिनीम चम्पापुरी शत्रुगण रहित प्रकम्पसी प्रतीत हो रही थी। फहराती वाओं का समूह मानों रिपुगरणों को तर्जना कर रहा था। वह अमरपुरी के समान प्रतीत होती थी ॥ ८८ ॥
तदुद्याने स्थितस्तेन विहितोचित सत् क्रियाः । तत्काल मंगलारम्भ व्यग्रा शेष परिग्रहः ॥ ८६ ॥
चम्पा के उद्यान में डेरा लगाया । वहीं सम्पूर्ण क्रिया-कलापों का प्रारम्भ किया। विवाह के योग्य समस्त विधि-विधान की तैयारी कर शीघ्र ही मङ्गल कार्य प्रारम्भ किया गया । समस्त जम इस उसम वर - वधु संयोग की प्रतीक्षा में व्याकुल हो रहे थे ॥ ८६ ॥
जाते प समये तत्र समुत्सव ममताञ्चिते । संस्मात कल्पितामहप माध्यांबर विभूषणः ॥ ६० ॥
तत्काल सैंकडों उत्सव प्रारम्भ हो गये, स्नान मङ्गल, वस्त्रालंकार मण्डन मङ्गल, मालारोपण प्रादि, ताम्बूल प्रदानादि क्रियाएँ होने लगीं ।। ६० ।।
गोस नृत्य समालका नन्त सोमन्तनी जनः । चतुविध महाबाध बधिरी कृत विङ्गमुखः ।। ६१ ।।
सौभाग्यवती स्त्रियाँ गीत नृत्य, वादित्र, संगीत आदि करने लगीं । तत, वितत्, शिविर, धन चार प्रकार के वादित्रों से दशों दिशाएँ बधिर सी हो गई गूंजने लगी ।। ६१ ।।
चाह पौराङ्गना नेत्र शतपत्र
वलाञ्चितः ।
दीनानाथ जनतम्बन् कृत कृत्यान् समन्ततः ।। ६२ ।।
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