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इतिहास तथा अभिप्राय सर्व साधारणपर प्रगट नहीं है, इसलिये आन्दोलनकी जैसी चाहिये, वैसी सफलता नहीं हुई । यह देखकर हमने यह ग्रन्थ सरस्वनीसेवक पन्नालालजी बाकलीवालके अनुरोधसे अनुवादित गया किया है। आशा है कि, इसके एक बार पाठ करनेसे प्रत्येक मनुष्य इस पर्वके करने के लिये उत्सुक होगा । ___ पाठक देखेंगे कि, हमारे पवित्र धर्ममें पहले कैसे २ ऋषिमहर्षि होगये हैं और उन्होंने कैसे २ महान् ग्रन्थ निर्माण किये थे। हमारे प्रमादसे आज उन ग्रन्योंकी प्राप्ति तो कहां, उनके नाम जाननेवाले भी संसारमें न रहे । हाय ! जिन सिद्धान्तोंकी रक्षाके लिये संसारत्यागी निर्ममत्व महात्मा धरसेन जीको अतिशय आकुलता हुई थी, उनकी खोज करनेके लिये-शक्ति रहते भी उनका उद्धार करनेके लिये-हमारी प्रवृत्ति नहीं होती. जिनशास्त्रों के प्रभावसे आजतक संसारमें हमारे धर्मका अस्तित्व है, अन्यान्य धर्मवाले उदंड विद्वान, जिनके पाठसे गर्वगलित होजाते थे और मुक्तकंठसे जैनधर्मकी प्रशंसा करके उसके अनुयायी हो जाते थे, उन्हीं ग्रन्थों की आज ऐसी दुर्दशा है कि, देखकर रोना आता है । आज ये ही अपूर्व ग्रन्थ किसी दूसरी जीवित जातिके हाथमें होते तो वह संसारमें जैनधर्मकी धूम मचा देती। ___ अवश्य ही हम लोगोंके हृदयसे जिनवाणी माताका गौरव नष्ट हो गया है । अपने आचार्योंकी वृत्तिका अभिमान विलुप्त होगया है। नहीं तो उदारशील कहलाकर प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये धर्ममें लगाकर भी हमारी जाति का एक पैसा ग्रन्थजीर्णोद्धारके नहीं लगता. यह बात कब संभव होसकती थी ? आज एक का लाल ऐसा नहीं दिखता है, जिसने किसी एक विलुप्त