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मुनिवंशदीपिका । महान् दिगम्बराचार्य।
सवैया इकतीसा ( मनहर )। वीरजिनराय जद पायौ है अकार्य-पद, केवली सु तीन ताके पीछे और भये हैं । गौतम सुधर्ममूरि फेरि जम्बू कर्म चूरि, बासठ वरसमाहिं तीनों शिव गये हैं। तीनौं भगवंत अरहंत हितू जान गुण, ज्ञानके निधान उपगार बड़े किये हैं । देकै पंथ सांचौ आप-सांचौ छोड़ि सांचे भए, ऐसे गुरुपाँय दास नैनसुग्न नये हैं॥ ८ ॥ जंबूस्वामीके पिछार सौ वरसकेमँझार, पांच श्रुतकेवलि जिनेन्द्र-च धरै हैं । संपूरन श्रुतज्ञान द्वादशांगके निधान, दुखी देखि जीवनपै दयाभाव करे हैं । जीव औ अजीवके दरव गुण परजाय, लोकथिति आदिके कथन अनुसरे है । ऐसे विष्णु दुजे नंदिमित्र और अप्राजित, गोवर्द्धन भद्रबाहुपाँय हम परे हैं ॥ ९ ॥ पीछे एकसौ तिरासी वर्षमाहिं ग्यारा साधु, भए ग्यारा अंग दशपूर्व विद्या पढ़ी है । प्रथम विशाखामूरि प्रोष्ठिल सुगुणभूरि, क्षत्रिय तृतीय जयसेन बुधि बढ़ी है । नागसेन सिहारथ धृतिषण विजैदेव, वुद्धिमान तथा गंगदेव गुण गढ़ी है। धर्मसेन आदि गुरुदेवकी सुजस-बेलि, देखौ भविजीव लोक-मंडपंप चढ़ी है ॥ १०॥ धर्मसेनदेवके पिछारी कालदोप पाय, द्वादशांगमाहिं एक अंग ज्ञान गयो है। वीस और दोयसौ वरसमाहिं पंच मुनि,
१ यदा-जब । २ सिद्धपद । ३ अपना सांचा अर्थात् शरीर छोड़कर । ४ अपराजितपरि । ५ बद्धिलिग भी नाम है।