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( १६ ) वस्त्र पहनना और शुद्ध और सरल भोजन खाना चाहते हैं । पर इससे अवश्यतर यह है कि हमारा मन और हमारे आचरण पवित्र हो । सच है ' साचे राचे राम' अर्थात् जिनका हृदय शुद्ध और मन पवित्र है वे साक्षात् ईश्वरके दर्शन करके कृतार्थ होंगे। इसके लिए 'पवित्र जीवन और नीतिशिक्षा, ' 'शान्तिसार,' और 'शील
और भावना' नामकी पुस्तकें पड़ो जिनका मूल्य केवल डेढ़ २ आना है।
(ख) हमें जड़ और मूढ़ होकर विद्याके केवल ग्राहक नहीं होना चाहिये । अर्थात् हम ऐसे थैले वा पात्र नहीं हैं कि जिसमें विद्या ठूस २ कर बिना सोचे समझे भर लें, विपरीत इसके हमें
अतन्द्रित और व्यवसायी बनना चाहिये और सच्चे ज्ञान और विद्यासागरको जहांसे मिले सोच समझकर प्राप्त करना चाहिये । हमें अपनी उपलम्भन और अवेक्षणशक्तियोंको बढ़ाना और उन्नति देना चाहिये । अवेक्षण और तुलनाके विना केवल पुस्तकीय विद्यासे हमारी मानसिक शक्तियां उन्नत नहीं हो सकती । शिक्षाका मुख्य उद्देश्य यह है कि मनुप्यको मनुष्य बनाया जाए, उसकी खाभाविक शक्तियोंको उन्नति दी जाए, और साथ ही उसे नीगेगता विद्यासार ज्ञान और नीतिकी बड़ी २ बात सिखाई जाएं, इस लिए कि वह इस संसारमें आनन्दमय धार्मिक और पवित्र जीवन व्यतीत कर, आगेके लिए उच्च और उत्तम आशाएं रक्खे जैसा कि उसके मानसिक संतोष और शुद्ध अन्तःकरणसे प्रकट है। स्कूलमें तुम्हें 'ड्राइंग' अवश्य सीखना चाहिये, क्योंकि उससे हाथ जमता है, अवेक्षण और तुलनाकी शक्तियां बढ़ती हैं, हमारा वस्तुओंका ज्ञान जो पहले अनिश्चित और संदिग्ध था अब ठीक २ और