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प्रश्नोत्तररत्नमाला और राजा अमोघवर्ष ।
यह प्रश्नोचररत्नमाला एक २९ श्लोककी छोटीसी कविता है । परन्तु ऐसी मुन्दर और मनोहर है कि, इसे रत्नमाला कहनेमें कुछ भी संकोच नहीं होता । प्रत्येक धर्मके अनुयायी इसके उपदेशापर प्रसन्नतास चल सकते हैं । इसका एक एक श्लोक अमूल्य है । .. अच्छी वस्तुका म्वामी हर कोई बनना चाहता है " इस न्यायम आज इमकं चार मतवाले म्वामी बनाना चाहते हैं। १शंकराचार्य के अनुयायी. २ शुकदेवके अनुयायी. ३ श्वेताम्बरी और ४ दिगम्बरी । इनमम पहले दोके अनुयायियोंने तो इसमें अपने मतके पुष्ट करनेवाले छह मान शाके नये बनाकर मिला दिये हैं
और मंगलाचरण और प्रशस्निके आदि अन्तके दो श्लोक निकाल दिय है । परन्तु ऊपग्मे मिलाये हुए श्लोक ग्लोंमें कारखंडकी वरह पृथक् जान पड़ते हैं। यह सम्पूर्ण ग्रन्थ आर्याछन्दमें है पंरतु मिलाय हुए लोक वसन्ततिलका छन्दमें है. यह बात विचाणीय है । इसम जान पड़ता है कि. उक्त श्लोक पीछेसे कीमीन
१ सेन्यं मदा किं गुरुवेदवाक्यं ॥ ॥ कार्या प्रिया का शिवविष्णु भक्तिः .. ||}! किं कर्म कृत्वा नहि गोचर्नायं, कामारिक मारि ममर्चनाख्यम् ॥ २०॥ उपस्थिते प्राणहरे कृतान्ते किमाशु कार्य सुधिया प्रयत्नात । वाक्कायचितैः सुखदं यमनं मुगरिपादम्बुजमेव चिन्त्यम् ॥ २४ ॥ .... कि कर्म यत्प्रीतिकरं मुगरेः ... ॥ ३०॥
२ प्रणिपत्य वर्धमान प्रश्नोत्तररत्नमालिकां वक्ष्ये । नागनरामरवन्य देवं देवाधिपं वीरम् ॥ १ ॥