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अर्थ - ऐसा जानना चाहिये कि, क्रोध, मान, माया, और लोभ, ये चार कषायके भेद हैं और मन, वचन तथा काय ये तीन योगके भेद हैं। असुहेदरभेदेण दु एक्केकं वणिदं हवे दुविहं । आहारादी सण्णा अमुहमणं इदि विजाणेहि ५० अशुभेतरभेदेन तु एकैकं वर्णितं भवेत् द्विविधम् ।
आहारादिसंज्ञा अशुभमनः इति विजानीहि ॥ ५० ॥
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अर्थ - मन वचन और काय ये अशुभ और शुभके भेदसे दो दो प्रकारके हैं। इनमेंसे आहार, भय, मैथुन और परिग्रह इन चार प्रकारकी संज्ञाओं ( वांछाओं) को अशुभमन जानना चाहिये । भावार्थ - जिस मनमें आहार आदिकी अत्यन्त लोलुपता हो, उसे अशुभमन कहते हैं । किण्हादितिणि लेस्सा करणजसोक्खेसु गिद्दिपरिणामो | ईसाविसादभावो असहमति य जिणा वेंति ॥ ५१ ॥
कृष्णादितिस्रः लेश्याः करणजसौख्येषु गृद्धिपरिणामः । ईर्षाविपाभावः अशुभमन इति च जिना ब्रुवन्ति ॥ ५१ ॥ अर्थ - जिसमें कृष्ण, नील, कापोत ये तीन लेश्या हों, इन्द्रियसम्बन्धी सुखोंमें जिसके लोलुपतारूप परिणाम हों, और ईर्षा ( डाह ) तथा विषाद (खेद ) रूप जिसके भाव रहते हों, उसे भी श्रीजिनेन्द्रदेव अशुभ मन कहते हैं ।