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हैं और जो आगे होंगे वे सब इन्हीं भावनाओंका चिंतवन करके ही हुए हैं । इसे भावनाओंका ही माहात्म्य समझना चाहिये। इदि णिच्चयववहारंजं भणियं "कुंदकुंदमुणिणाहें। जो भावइ सुद्धमणो सो पावइ परमणिब्वाणं ९१॥
इति निश्चयव्यवहारं यत् भणितं कुन्दकुन्दमुनिनाथैः। __ यः भावयति शुद्धमनाः स प्राप्नोति परमनिर्वाणम् ॥ ९१ ॥
अर्थ-इस प्रकार निश्चय और व्यवहार नयसे यह वारह भावनाओंका स्वरूप जो मुनियोंके स्वामी श्रीकुन्दकुन्दाचार्यने कहा है, उसे जो पुरुष शुद्धचित्तसे चितवन करेगा, वह मोक्षको प्राप्त करेगा।
ददि बारसअणुवेक्खा । ?