Book Title: Jina pujadhikar Mimansa
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Natharang Gandhi Mumbai

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Page 392
________________ एकादशदशभेदं धर्म सम्यक्त्वपूर्वकं भणितम् । सागारानगाराणां उत्तमसुखसम्प्रयुकैः ।। ६८ ॥ अर्थ-उत्तम सुख अर्थात् आत्मीक सुखमें लीन हुए जिनदेवने कहा है कि, श्रावकों और मुनियोंका धर्म जो कि सम्यक्त्वसहित होता है, क्रमसे ग्यारह प्रकारका और दश प्रकारका है । अर्थात् श्रावकोंका धर्म ग्यारह प्रकारका है और मुनियोंका दश प्रकारका है।। दंसणवयसामाइयपोसहसच्चित्तरायभत्ते य । बम्हारंभपरिग्गहअणुमणमुद्दिट्ट देसविरदेदे ।।६९।। दर्शनव्रतसामायिकप्रोषधसचित्तरात्रिभक्ते च । ब्रह्मारंभपरिग्रह अनुमतमुद्दिष्टं देशविरतते ॥ ६ ॥ अर्थ-दर्शन, व्रत, सामायिक, प्रोषधोपवास, सचित्तत्याग, रात्रिभक्तत्याग, ब्रह्मचर्य, आरंभत्याग, परिग्रहत्याग, अनुमतित्याग और उदिष्टत्याग ये ग्यारह भेद देशवत अथवा श्रावकधर्मके हैं। ये भेद श्रावकोंकी ग्यारह प्रतिमाके नामसे प्रसिद्ध हैं। उत्तमखममद्दवजवसच्चसउच्चं च संजमं चेव । तवतागमकिंचण्हं बम्हा इदि दसविहं होदि॥७॥ उत्तमक्षमामार्दवार्जवसत्यशौचं च संयमः चैव । तपस्त्यागं आकिञ्चन्यं ब्रह्म इति दशविधं भवति ॥ ७० ॥ १ गोमटसारके जीवकांडकी ४७७ नम्बरकी गाथा और वसुनंदिश्रावकाचारकी चौथी गाथा भी यही है । यहांपर क्षेपक मालम पड़ती है। चार पाTE २२जी मारें।

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