Book Title: Jina pujadhikar Mimansa
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Natharang Gandhi Mumbai

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Page 398
________________ ३६ अर्थ-जीव निश्चयनयसे श्रावक और मुनिधर्मसे विलकुल जुदा है, इसलिये रागद्वेषरहित परिणामोंसे शुद्धस्वरूप आत्माका ही सदा ध्यान करना चाहिये । अथ बोधिदुर्लभ भावना । उप्पज्जदि सण्णाणं जेण उवारण तस्सुवायस्स | चिंता हवेइ वोही अचंत्तं दुलहं होदि ॥ ८३ ॥ उत्पद्यते सद्ज्ञानं येन उपायेन तम्योपायम्य । चिन्ता भवेत् बोधिः अत्यन्त दुर्लभं भवति ॥ ८३ ॥ अर्थ - जिम उपायसे सम्यग्ज्ञानकी उत्पत्ति हो, उस उपायकी चिन्ता करनेको अत्यन्त दुर्लभ बोधिभावना कहते हैं । क्योंकि बोधि अर्थात् सम्यग्ज्ञानका पाना बहुत ही कठिन है । कम्मुदयजपज्जाया हेयं खाओवसमयणाणं खु । सगदव्वमुवादेयं णिच्छयदो होदि सण्णाणं || ८४|| कर्मोदय पर्याया हेयं क्षायोपशमिकज्ञानं खलु । स्वकद्रव्यमुपादेयं निश्चयतः भवति सद्ज्ञानम् ॥ ८४ ॥ अर्थ - अशुद्ध निश्चयनयसे क्षायोपशमिकज्ञान कमक उदयसे जो कि परद्रव्य हैं उत्पन्न होता है, इसलिये हेय अर्थात् त्यागने योग्य है और सम्यग्ज्ञान ( बोधि ) स्वकद्रव्य है अर्थात् आत्माका निजस्वभाव है, इसलिये उपादेय ( ग्रहण करने योग्य ) है | मूलत्तरपयडीओ मिच्छत्तादी असंखलोगपरिमाणा ।

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