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१४ परिहरदि दयादाणं सो जीवो भमदि संसारे ॥३०॥
पुत्रकलत्रनिमित्तं अर्थ अर्जयति पापबुद्धया । परिहरति दया दानं सः जीवः भ्रमति संसारे ॥ ३० ॥ अर्थ-जो जीव स्त्रीपुत्रोंके लिये नानाप्रकारकी पापबुद्धियोंसे धन कमाता है, और दया करना वा दान देना छोड़ देता है, वह संसारमें भटकता है। मम पुत्तं मम भजाममधणधण्णोत्ति तिब्बकंखाए । चइऊण धम्मबुद्धिं पच्छा परिपडदिदीहसंसारे ॥३१
मम पुत्रो मम भार्या मम धनधान्यमिति तीवकांक्षया । त्यक्त्वा धर्मबुद्धिं पश्चात् परिपनति दीर्घसंसारे ।। ३१ ॥ अर्थ-"यह मेरा पुत्र है, यह मेरी स्त्री है, और यह मेरा धन धान्य है।" इस प्रकारकी गाढ़ी लालमासे जीव धर्मबुद्धिको छोड़ देता है और इमी कारण फिर मत्र ओरसे अनादि संसारमें पड़ता है। मिच्छोदयेण जीवो जिंदंतो जेण्णभासियं धम्म । कुधम्मकुलिंगकुतित्थं मण्णंतो भमदि संसारे ॥३२।।
मिथ्यात्वोदयेन जीवः निंदन् जैनभाषितं धर्मम् ।
कुधर्मकुलिङ्गकुतीर्थ मन्यमानः भ्रमति संसारे ॥ ३२ ॥ अर्थ-मिथ्यात्व कर्मके उदयसे जीव जिनभगवानके कहे हुए धर्मकी निंदा करता है और बुरे धर्मों, पाखंडी गुरुओं और मिथ्याशास्त्रोंको पूज्य मानता हुआ संसारमें भटकता फिरता है।