Book Title: Jina pujadhikar Mimansa
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Natharang Gandhi Mumbai

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Page 381
________________ १९ अर्थ - यह जीव अशुभ विचारोंसे नरक तथा तिर्यंचगति पाता है, शुभविचारोंसे देवों तथा मनुष्योंके सुख भोगता है और शुद्ध विचारोंसे मोक्ष प्राप्त करता है, इस प्रकार लोक भावनाका चिन्तवन करना चाहिये । अथ अशुचिभावना | अट्ठीहिं पडिबद्धं मंसविलित्तं तएण ओच्छण्णं । किमसंकुलेहिं भरिदम, चोक्खं देहं सयाकालं ४३ अस्थिभिः प्रतिबद्धं मांसविलिप्तं त्वचया अवच्छन्नम् । क्रिमिसंकुलै भरितं अप्रशस्तं देहं सदाकालम् ॥ ४३ ॥ अर्थ- हड्डियोंसे जकड़ी हुई है, मांसस लिपी हुई है, चमड़ेसे ढकी हुई है, और छोटे २ कीड़ोंके समूहसे भरी हुई है, इस तरहसे यह देह सदा ही मलीन है । दुग्गंधं वीभत्थं कलिमल (?) भरिदं अचेयणो मुत्तं । सड पडणं सहावं देहं इदि चिंतये णिच्चं ॥ ४४ ॥ दुर्गंधं बीभत्सं कलिमलभृतं अचेतनो मूर्त्तम् । स्खलनपतनं स्वभावं देहं इति चिन्तयेत् नित्यम् ॥ ४४ ॥ अर्थ - यह देह दुर्गंधमय है, डरावनी है, मलमूत्रसे भरी हुई है, जड़ है, मूर्तीक ( रूप रस गंध स्पर्शवाली ) है, और क्षीण होनेवाली तथा विनाशीक स्वभाववाली है; इस तरह निरन्तर इसका विचार करते रहना चाहिये ।

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