Book Title: Jina pujadhikar Mimansa
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Natharang Gandhi Mumbai

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Page 369
________________ - एवं चितहि एवंत्तं एक्को जायदि मरदि य तस्स फलं भुंजदे एक्को ॥१४॥ एकः करोति कर्म एकः हिण्डति च दीर्घसंसारे । एकः जायते म्रियते च तस्य फलं भुङ्क्ते एकः ॥ १४ ॥ अर्थ-यह आत्मा अकेला ही शुभाशुभ कर्म बाँधता है, अकेला ही अनादि संसारमें भ्रमण करता है, अकेला ही उत्पन्न होता हैं, अकेला ही मरता है और अकेला ही अपने कर्मोंका फल भोगता है। इसका कोई दूसरा साथी नहीं है । एको करेदि पात्रं विमयणिमित्ण तिव्वलोहेण । णिरयतिरियेसु जीवो तस्स फलं भुंजदे एक्को ॥ १५॥ एकः करोति पापं विषयनिमित्तेन नीत्रलोभेन । निग्यतिर्यक्षु जीवो तस्य फलं भुङ्ग एकः ॥ १५ ॥ अर्थ-यह जीव पांचइन्द्रिय के विषयोंके वश तीव्रलोभसे अकेला ही पाप करता है और नरक तथा तिर्यच गतिमें अकेला ही उनका फल भोगता है । अर्थात् उसके दुःखोंका बटवारा कोई भी नहीं करता है । rat करेदि पुण्णं धम्मणिमित्रोण पत्तदाणेण । मणुवदेवे जीवो तस्स फलं भुंजदे एको || १६ || एकः करोति पुण्यं धर्मनिमित्तेन पात्रदानेन । मानवदेवेषु जीवो तस्य फलं भुङ्क्ते एकः ।। १६ ।। अर्थ - और यह जीव धर्मके कारणरूप पात्रदानसे

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