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हवे । अहमिंदट्ठाणाई बलदेवप्पहुदिपजाया ॥५॥
जलबुद्दशक्रधनुःक्षणरुचिघनशोभेव स्थिरं न भवेत् ।
अहमिन्द्रस्थानानि बलदेवप्रभृतिपर्यायाः ॥ ५ ॥ अर्थ-अहमिन्द्रोंकी पदवियां और बलदेव नारायण चक्रवर्ती आदिकी पर्यायें पानीके बुलबुलेके समान, इन्द्र. धनुषकी शोभाके ममान, विजलीकी चमकके समान और बादलोंकी रंगविरंगी शोभाक समान स्थिर नहीं हैं। अर्थात् थोड़े ही समयमें नष्ट हो जानेवाली हैं। जीवणिवद्धं देहं खीरोदयमिव विणस्मदे सिग्छ । भोगोपभोगकारणदब्बं णिचं कहं होदि ॥६॥
जीवनिबद्धं देहं क्षीरोदकमिव विनश्यति शीघ्रम् । __ भोगोपभोगकारणद्रव्यं नित्यं कथं भवति ॥ ६ ॥
अर्थ-जब जीवसे अत्यंत मंबंध रखनेवाला शरीर ही दृश्य मिले हुए पानीकी तरह गीघ नष्ट हो जाता है, तब भोग और उपभोगके कारण दूमरे पदार्थ किस तरह
SHAN नित्य हो मकते हैं । अभिप्राय यह है कि, पानीमें दूधकी तरह जीव और शरीर इस तरह मिलकर एकमेक हो रहे हैं कि, जुदे नहीं मालूम पड़ते हैं। परंतु इतनी सघनतासे मिले हुए भी ये दोनों पदार्थ जब मृत्यु होनेपर अलग २ हो जाते हैं, तब संसारके भोग और उपभोगके पदार्थ जो शरीरसे प्रत्यक्ष ही जुदे तथा दूर हैं सदाकाल कैसे रह सकते हैं ?