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भूमिका |
यह छोटीसी पुस्तक इस लिये प्रकाशित की जाती है कि हमारे समाज के लोगों में विशेषकर बालक गणोंमें इसे कंठ करनेकी प्रवृत्ति हो जावे । बालकगण इसे कंठाम रखकर यदि परम्पर प्रश्नोत्तर किया करेंगे, तो विनोदके साथ २ अमूल्य २ शिक्षाओंका लाभ भी होगा । महाराज अमोघवर्षकी प्रश्नोतररत्नमालाके सिवाय उपयोगी समझकर एक अजान विद्वानकी बनाई हुई प्रश्नोत्तरमाला भी इसमें संग्रह की जाती है । ये दोनों मालायें कुछ दिन पहले जैनमित्रमें पं० लालारामजीके द्वारा सार्थ प्रकाशित हो चुकी हैं । हम उन्हें कुछ फेरफारके साथ ढंग बदलकर प्रसिद्ध करते है । आशा है कि हमारा ढंग पाठकोंको रुचिकर होगा ।
प्रश्नोतररत्नमाला कर्त्ता राष्ट्रकुटवंशीय राजा अमोघवर्ष हैं जो कि परम दिगम्बर जैन थे। आदि पुराणके कर्त्ता भगवजिनसेनाचार्य उनके गुरु थे । इस विषय में हम यहां स्वयं कुछ न लिखकर जैनमित्रके अंक ३ वर्ष ८ में श्रीनाथूराम प्रेमीका लिखा हुआ जो लेख प्रकाशित हुआ है, उसका अन्तिम भाग उद्धृत कर देते हैं। इससे पाठकोंको इस छोटीसी किन्तु अपूर्व पुस्तकका सविशेष परिचय मिलेगा ।
सरस्वती सेवक:-- जिनवरदास गुप्त ।