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(६८ ) चाहिये । उसे अपवित्र और पापी मनुष्योंके पास उन्हें लाभ पहुंचानेके लिए भी नहीं जाना चाहिये जबतक कि वह आप ऐसा पवित्र और दृढ न बन जाए कि बुरी संगतिके वशमें न आसके और बुरेका प्रभाव तनिक भी उसपर न पड़ सके वरञ्च बुराई और पापको सर्वथा दूर कर दे । उसे भले और सज्जन पुरुषोंकी ही संगतिमें रहना चाहिये इस लिए कि वह उनके उत्तम प्रभावके कारण बहुत शीघ्र उन्नति कर सके। ___ बुरे मनुष्योंके सुधारनेवाले भी बुरे मनुष्यों के संग नहीं रहते; वे भलाई करनेवालोंको ही अपना संगी बनाते हैं । पवित्र
और शुद्ध हृदयवालोंके संग रहनेके लिए यह अवश्य है कि आप भी पवित्र और शुद्धहृदय बन जाए ।
जिन लोगोंका मन पवित्र है वे बुराई करनेवालोंके पास तक नहीं फटकते और न उनकी ओर झांकते हैं । यह द्वेष नहीं है; यह बुद्धिमत्ता है। ___ जो मनुष्य चिरकाल तक किसी बुराई में लगा रहता है, इसका परिणाम यह होगा कि सब लोग उसको त्याग कर और वह दुःखी रहेगा, कोई उसको पूछेगा नहीं और वह अकेला रहजाएगा । यह बात उसके लिए अच्छी है । इस अकेले रहनेके दण्डसे वह ठीक मार्गपर आजाएगा और सुधर जाएगा । यह अच्छी बात है कि बुराई करनेवाला पछताए और मलाई करने लगे; इससे वह फिर प्रसन्न हो जाएगा और बिगड़े हुए मित्र फिर आकर उससे मिलेंगे।
रही नहीं कि सज्जन दुष्टोंसे बचते हैं और परे रहते हैं; व. रञ्च दुष्ट भी सज्जनोंके पास आनेसे शिजकते हैं क्योंकि स