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( ६७ ) बुरे मनुप्योंसे बचनेमें एक और भी बात है और वह बात वस्तुओंमें योग्यताका स्पष्ट रीतिसे जान लेना है । कई एक मूल पदार्थ ऐसे हैं कि स्वभावहीसे उनका रसायनसंयोग हो नहीं सकता; इस लिए उन्हें मिलानेका यत्न करना केवल मूर्खता है । इसी प्रकार कई एक आध्यात्मिक मूल पदार्थ भी ऐसे हैं जो आपसमें मिल नहीं सकते और उनके संयोगका यत्न करना मूर्खताका द्योतक है । भलाई और बुराई पुण्य और पाप, राग और द्वेष, पवित्रता और अपवित्रता, शुद्धि और अशुद्धि, ये सदासे विरुद्ध
और पृथक् हैं । इनका संयोग असम्भव है । सम्भव नहीं कि ये आपसमें एक हो जाएं मिल जाएं और एक दूसरेके सहायक हों। इस लिए पवित्र और महात्मा मनुप्यका अपवित्र और दुरात्माके साथ मेल नहीं हो सकता । इनमें मेल तब ही हो सकता है जब कि सज्जन दुष्ट बन जाए या दुष्ट सज्जन हो जाए। __बुरे मनुप्यके पछताने और सुधर जानेका एक सबसे पक्का चिन्ह यह है कि वह अपने पहले साथियोंकी संगति सर्वथा छोड़ दे । जब कोई मनुष्य मद्यपानकी बुरी बानका त्याग कर देता है तो वह फिर कभी मदिरागृहमें अपने मदिरा पीनेवाले सङ्गियोंके साथ नहीं दिखाई देता । यही दशा प्रत्येक प्रकारकी बुराईकी है अर्थात् जब हम किसी बुराईसे बचते हैं तो उस बुराईके करनेवालों से भी परे रहते हैं । यह कहावत प्रसिद्ध है कि "जैसेको तैसा मिलता है," और "रुपयेको रुपया खेंचता है" और बुरे और भले पुरुषों में परस्पर मेल हो नहीं सकता। __ यह एक बड़ी उत्तम बात है कि जो कोई पवित्र जीवन व्यतीत करना चाहता है उसे कदापि दुष्टोंकी संगतिमें नहीं रहना