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जैनमन्थरत्नाकरे
Vilom sha
मधुकरसमतां यस्तेन सोमप्रभेण
व्यरचि मुनिपनेत्रा सूक्तिमुक्तावलीयम् ॥ ९९ ॥
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कवित्त छन्द ।
जैन वंश सर हंस दिगम्बरः मुनिपति अजितदेव अति आरज । ताके पद वादीमदभंजन; प्रघंटे विजयसेन आचारज || ताके पट्ट भये सोमप्रभः तिन ये ग्रन्थ कियो हित कारज | जाके पढत सुनत अवधारत. है सुपुरुष जे पुरुष अनारज॥९९॥
इन्द्रवजा
सोमप्रभाचार्यमभा व लोके वस्तु प्रकाशं कुरुते यथाशु | तथायमुश्चरूपदेशलेशः शुभोत्सवज्ञानगुणांस्तनोति ॥ १०० ॥ भाषाग्रन्थकर्त्ता की ओरसे नामादि.
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दोहा छंद |
नाम सूक्तिमुक्तावली: द्वाविंशति अधिकार ।
ठान लोक परमान सवः इति ग्रन्थविस्तार ॥ १ ॥ sarve वनारसी: मित्र इकचिन ।
तिनहि अन्य भाषा कियो बहुविध इक्यानवः ऋतु श्रीषम वैशाख ।
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सोमवार एकादशी: करनछत्र मिन पाय || ३ ॥
कवि || २ ॥
इनि वसीमनाचा रचिता निन्दरप्रकरापरपर्यायानुवरी भाषान्दानुवादसहिता समाप्ता ।
१ इस लोकका नाया छ मा नहिीं मिला.