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नित्यप्रति प्रातःकाल उठो और शौचादिकसे निवृत्त होकर और नहा धोकर प्रार्थना करो और ईश्वरका धन्यवाद कहो कि उसने अबतक तुम्हारी रक्षा की। फिर वायुसेवनके लिये कुछ दूर बाहर जाओ, कहीं ऊंचे टीलेपर चढ़कर सूर्यको निकलते देखो।
नित्यप्रति उत्तम बातोंपर विचार करो और श्रेष्ठ कार्योंके भाव मनमें सोचो, भद्र पुरुष और महात्माओंसे मिलो जुलो और जहांतक हो सके परोपकार करनेमें तत्पर रहो।
प्रातःकाल उठनेसे मनुष्य सदा प्रसन्न रहता है, नीरोग रहता है और अपने कामकाजमें लगनेसे धन कमाता है । विपरीत इसके जो लोग दिन चढेतक बिछौनोंपर पड़े रहते हैं वे कभी प्रसन्न और प्रफुल्लवदन नहीं रहते, तनिक २ सी बातोंपर लड़ पड़ते हैं, खिजेहुए निगश और घबराए हुए रहते हैं।
एक और बड़ा आवश्यक उद्योग यह है कि कोई विशेष और भारी काम प्रारम्भ करो। देखो! मनुष्य घर किस प्रकार बनाने लगता है ? पहले वह उस घरका खाका सोच समझकर बनाता है
और फिर पक्की नींव रखकर उस खाकेके अनुसार प्रत्येक काम करता है । यदि वह प्रारम्भमें उपेक्षा करे अर्थात् ठीक २ सोचकर खाका न बनाए और योंही अंधाधुन्द काम करने लगे, तो उसका परिश्रम वृथा जाएगा । और यद्यपि उसका घर बिना ढए पूरा बन भी जाए तथापि उसकी नींव पक्की न होगी, उसके गिर जानेका भय होगा और वह किसी कामका न होगा । यही नियम प्रत्येक अवश्य कार्यमें प्रचलित है । अर्थात् प्रत्येक कार्यके ठीक २ प्रारम्भ करनेमें पहली आवश्यक बात यह है कि उसके करनेसे