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(घ) किसी कार्यका ठीक २ प्रारम्भ करना । देखो इस भौतिक संसार में प्रत्येक वस्तु पहले छोटीसी होती है और फिर धीरे २ बड़ी हो जाती है । देखो एक छोटासा नाला फैलकर एक बड़ी भारी नदी वा दर्या बन जाता है, बूंद २ करके घड़ा और फूइयां २ करके एक तालाब भर जाता है, एक छोटी बड़बट्टी से एक बड़ा भारी बड़का पेड़ ऊगकर बहुत दूरतक फैल जाता है जो सैकड़ों वर्षसे आंधी और मेहको झेल रहा है और जिसकी छाया तले एक पलटन विश्राम कर सकती है । मेहकी थोड़ी २ बूंदोंसे एक बड़ा भारी जलका प्रवाह वा जलौघ उत्पन्न हो जाता है । एक सुलगती हुई दियासलाईके असावधानी से गिर जाने से सारा घर, आसपासके घर, वरञ्च गांव भी जल सकता है ।
इसी प्रकार आध्यात्मिक संसार में भी जो बातें आदिमें छोटी २ प्रतीत होती हैं अन्तमें जाकर उनका प्रादुर्भाव बड़ी २ बातों में होता है | देखो एक सूक्ष्म कल्पनासे एक आश्चर्यजनक वस्तुका उत्पादन हो सकता है, एक वाक्यके कहनेसे एक देशकी अवस्था पलटा खा जाती है, एक पवित्र विचारसे सारे संसारका उद्धार हो जाता है और एक क्षणभरके इन्द्रियविकार वा कामचेष्टा से घोर पाप बंध जाते है ।
प्रत्येक मनुष्यका जीवन छोटी २ बातोंसे प्रारम्भ होता है । ये बातें और घटनायें प्रतिदिन और प्रतिक्षण मनुष्य के सामने आती रहती हैं । यद्यपि आदिमें जैसा कि ऊपर वर्णन किया गया है ये बातें छोटी २ हैं और तुच्छ और क्षुद्र प्रतीत होती हैं, परन्तु सच पूछो तो ये ही छोटी २ बातें इस जीवनमें अधिक आवश्यक हैं ।