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( १८ ) न अच्छी पुस्तकें पढ़ सकती हूं, न लोगोंके साथ मेल जोलकर सकती हूं, मुझे कोई आनन्द नहीं, सारे दिन घरके धंधोंमें ही फंसी रहती हूं और कठिनाईसे अपना और अपने बच्चोंका पेट पालती हूं तो उसका जीना बड़ा दूभर हो जाता।
अब एक दूसरी स्त्रीका दृष्टान्त लो। इसकी निजकी आय बहुत अधिक है, इसे समय और ऐश्वर्य सुखको भी प्राप्ति है, परन्तु जो इसे अपना कुछ थोडासा समय सुख और रुपया किसी अवश्य और शुभ कार्यमें लगाना पडता है, इसीसे वह सदा दुःखी और बेचैन रहती है । सच है कि जिसमें स्वार्थ है, उसको काम करनेमें आनन्द कहां ? ___ ऊपरकी दो घटनाओंसे क्या यह सिद्ध नहीं है, कि इनमें से कोई घटना भी दुःखदायी नहीं है, और दोनों घटनाएं प्रेम वा खार्थकी दृष्टिके अनुसार भली वा बुरी हैं । अर्थात् मन में ही सब कुछ है, बाह्य घटनामें कुछ भी नहीं रक्खा । सच है मनुप्य अपने मनहीके द्वारा स्वर्गका नरक और नरकका स्वर्ग बना सकता है;___मन एव मनुष्याणां कारणं वन्धमोक्षयोः ।
जिस मनुप्यने वेद, वेदान्त दा मीमांसाको अभी पढ़ना प्रारम्भ किया है, जब वह यह कहता है “यदि मैं ब्याह न करता और इस प्रकार स्त्री और बाल बच्चोंका बोझ अपने सिर पर न लेता, तो मैं बहुत काम कर सकता था, और जो कुछ मैंने अब सीखा है यदि वह बात मैं बरसों पहिले जानता, तो मैं कभी भी विवाह न करता, मेरे मतमें वह मनुष्य ठीक मार्गपर नहीं है, और जो बड़ा काम