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(ज) दान । दान देने वा दूसरोंको लाभ पहुंचानेकी आठ सीढ़ियां क्रमसहित निम्नलिखित रीतिसे वर्णन की गई हैं। __पहली और सबसे निचली सीढ़ी यह है, दान देना पर इच्छासे न देना, अर्थात् हाथसे देना पर हृदयसे न देना ।
दूसरी सीढ़ी यह है-प्रसन्नतापूर्वक दान देना, परन्तु दुःखी पुरुषके कष्ट वा विपद्के अनुसार दान न देना।
तीसरी-प्रसन्नतापूर्वक और कष्टके अनुसार दान देना, पर विना मांगे न देना। ___ चौथी-प्रसन्नतापूर्वक, कष्टके अनुसार और मांगनेसे पहले ही दान देना पर दरिद्रीके हाथमें आप देना और सबके सामने देना, जिससे उसे लज्जाका दुःख सहना पड़े। __ पांचवीं-इस प्रकार देना कि दुःखी मनुष्य दान ले लें और उन्हें देनेवालेका पता विदित न हो। कितने एक पूर्वले पुरुष अर्थात् हमारे पिता और पितामह अपनी चादरके पिछले अंचल वा दुपट्टेके पल्लेमें रुपया बाँध दिया करते थे इस लिए कि दरिद्री जन उसे अलक्षित रीतिसे खोलकर ले लें। ___ छठी सीढ़ी—जो इससे कुछ बढ़कर है यह है कि जिनको हम दान देते हैं उनको तो जान लेना परन्तु अपने आपको उन्हें न जताना। __सातवीं-इस प्रकार दान देना कि दाता और ग्रहीता दोनोंमेंसे कोई किसीको न जाने । प्रायः करके कहीं २ मन्दिरोंमें गुप्त स्थान होता है वहांपर भले और सज्जन पुरुष कुछ द्रव्य, जो