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है वह उनकी अवस्थापर करुणादृष्टिसे विचार करता है, उनको अपना ही अंश समझता है और अपनेसे भिन्न और अपवित्र नहीं समझता, वरच अपना ही आत्मा जानकर यह कहता है कि वे भी मेरी ही तरह पाप कर रहे हैं, कष्ट उठा रहे हैं और दुःख भोग रहे हैं और इसपर भी यह जानकर प्रसन्न होगा कि वे भी अन्तमें मेरी तरह पूर्ण शान्तिको प्राप्त करेंगे ।
सहानुभूति परम सुख है; इसमें उत्तम श्रेय विद्यमान है । यह स्वर्गीय अवस्था है, क्योंकि इसमें स्वार्थ नष्ट हो जाता है और दूसरोंके साथ शुद्ध सुख और आध्यात्मिक आनन्द अनुभव करते हैं । जिस समय कोई मनुष्य सहानुभूति करना छोड़ देता है, तो यह जानो कि अब उसमें जीव नहीं रहा मानो वह मरेके समान है और देखना समझना और जानना भी छोड़ देता है '
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यह भी याद रक्खो, सहानुभूतिकी आवश्यकता धर्मात्माओं और सन्तोंको नहीं होती । आवश्यकता पापियों, मूर्खो और विकलोंहीको होती है अर्थात् उन लोगोंको जिन्होंने पाप करके बहुत कुछ कष्ट सहा है और चिरकाल तक दुःख उठाया है ।
सहानुभूति कई प्रकारसे प्रगट हो सकती है: — उसका एक प्रकार करुणा है, अर्थात् जो लोग कष्ट या दुःखमें ग्रस्त हैं उनपर दया करना इस आशयसे कि उनका दुःख थोड़ा हो जाए या बे उस दुःखको सह सकें । यह जब ही हो सकता है कि मनुष्य निष्ठुरता, क्रोध और वृथा दोषारोपणको अपने हृदयसे दूर कर दे और दया और करुणाभाव रक्खे |
सहानुभूतिका एक और प्रकार यह है कि जो लोग अपने