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लिए बोझ और कष्टका कारण होंगे । तुम्हें चाहिए कि अपने जीवनके कामों को बड़ी प्रसन्नता निःस्वार्थ और ध्यान से करो ।
तुम कहते हो, कि तुम्हें किसी विशेष कार्य्य वा कृत्यके करनेमें दुःख होता है और तुम यह कहकर उसे करते हो, “मैं यह कृत्य करता तो हूं, पर यह एक बड़ा भारी, कठिन और दुःखदाई काम है" । अब प्रश्न यह है कि क्या वह काम सचमुच दुःखदाई है या तुम्हारा स्वार्थ तुम्हें दुःख पहुंचा रहा है। सच पूछो तो जिस कृत्य के करने को तुम एक शाप, पराधीनता और दुःख समझ रहे हो, वही कृत्य तुम्हारे श्रेय स्वाधीनता और सुखका कारण है । सारी वस्तुएं एक प्रकारके दर्पण है जिनमें तुम अपना ही प्रतिबिम्ब देखते हो, और तुम अपने कृत्यमें जो बुराई और कष्ट देखते हो, वह केवल तुम्हारी ही भीतरी वा मानसिक दशाका प्रतिविम्ब है | यदि तुम उस वस्तु वा कृत्य के विषय में अपने मन और हृदय में ठीक और अच्छे विचार सोचो, तो वही कृत्य वा वस्तु तुम्हारी दृढता और कल्याणका कारण होगी और उसमें तुम्हें शुभ ही शुभ भास पड़ेगा ।
जिस कृत्यका करना ठीक और आवश्यक है, उसे अवश्य करो । यदि तुम अपने कृत्य से बचना चाहो, तो वही कृत्य देवताकी नाई तुम्हें बुरा भला कहेगा, और जिस भोग विलासके पीछे तुम दौड़ना चाहते हो, वही तुम्हारा शत्रु बनकर तुम्हें चाहक्तियां कहेगा । हे मूर्ख मनुष्यो ! तुम्हें कब समझ आवेगी और अपने भले बुरेको कब पहचानोगे ?
कौनसी वस्तु हैं जो दुःख देती है, कष्ट पहुंचाती है और बोझल प्रतीत होती है ? यह भोग विलास और तीव्र इच्छावाली