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छोटे २ कृत्योंपर ही ध्यान देनेसे धीरे २ बड़ा पुरुष बनता है । श्लाघा और पारितोषिककी अपेक्षा न करके और अभिमान और घमण्डको त्याग करके जो छोटे २ अवश्य कृत्योंको करता रहता है वही बुद्धिमान् और सामर्थ्यवान् होता है । यह मनुष्य बड़ाई नहीं चाहता; केवल आज्ञापालन, निष्कामता, सत्य और सरलताकी अभिलाषा रखता है और छोटे २ कार्यों और कृत्योंद्वारा इन गुणोंको प्राप्त करके उन्नतिको पहुंच जाता है ।
सच पूछो तो बड़ा मनुष्य वह है जो किसी कार्यको असावधानीसे नहीं करता और कभी घबराता नहीं, मूल और मूर्खताको छोड़कर और किसी बात से बचना नहीं चाहता, जो कार्य वा कृत्य उसके आगे आता है उसे ध्यान देकर करता है और विलम्ब नहीं लगाता । अपने कार्य और नित्यके कृत्य में पूरा २ ध्यान लगाता है और उसके करनेमें दुःख सुख दोनों को भूल जाता है और इस कारण उसमें आप ही आप वह सरलता और सामर्थ्य आ जाती है जिसे बड़ाई कहते हैं ।
जो मनुष्य प्रत्येक कृत्यको यथायोग्य पूर्णता और निष्कामतासे ध्यान देकर करता है उसमें काम करनेकी सामर्थ्य बुद्धिमत्ता साधुता और शीलके गुण उत्पन्न हो जाते हैं । बड़ा पुरुष वही है जो आप ही आप धीरे २ लगातार परिश्रम, धैर्य और यत्नसे उन्नति प्राप्त करे जैसे कि एक पेड़में धीरे २ समय पाकर सुन्दर फूल लगते हैं ।
याद रक्खो कि जैसे समुद्र बिन्दुओंसे मिलकर बना है, पृथिवी कणोंसे और तारे ज्योतिकी नोकोंसे, उसी प्रकार यह जीवन भी