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( २९ ) फिर हम यह कह सकते हैं कि तुम परम आनन्ददायक गुप्त स्याग करनेके लिए प्रस्तुत हो । ___ इस लिए तुम्हें क्रोध और निर्दयता छोड़कर भारी भरकम होना चाहिये; अपने आपको अपने वशमें रक्खो और निरन्तर पुण्य और धर्मके काम करनेसे अपराधीपर दया और क्षमा करनी सीखो । चण्ड खभाव, असहिष्णुता और अक्षमाको त्याग दो । इसी प्रकार और स्वार्थसम्बन्धी विषयभोग और क्षणभङ्गुर आनन्दोंको त्याग दो; उत्तम और उत्कृष्ट सुग्वमें अपने चित्तको लगाओ,
और विषयातीत होकर परमात्मामें मग्न हो और सच्चा आनन्द अनुभव करो। किसीसे द्वेषभाव न रक्वो और सबके साथ प्रीतिसे वा । अपवित्र इच्छाएं, आत्मकरुणा, आत्मश्लाघा और अभिमानको त्याग दो, क्योंकि ये सब मनके बुरे भाव हैं और हृदयके दृषक है। ___ यह आत्मोत्सर्ग और इस कारण परम ज्ञान और आनन्द किसी एक बड़े कामके करनेसे नहीं मिलता, वरच नित्यप्रति सां. सारिक जीवनमें बहुतसी छोटी २ बातोंके त्याग करनेसे और धीरे २ स्वार्थपर सत्यकी जय होनेसे ही मिलता है । जो मनुष्य प्रतिदिन अपने आपको थोड़ा २ करके वशमें करता रहता है और जो मनुष्य किसी निर्दयताके भाव, किसी अपवित्र वासना और किसी पापकी प्रवृत्तिको सर्वथा जीतकर उसपर प्रबल होता है, वही मनुष्य नित्यप्रति अधिक बलवान्, पवित्र, शुद्धहृदय
और बुद्धिमान होता जाता है, और प्रतिदिन सत्यकी उस पराकाष्ठाको पहुंचता रहता है जो प्रत्येक निष्काम और स्वार्थरहित कार्यके द्वारा कुछ २ भासती है।