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बातमें है ? इसे किस प्रकार करना चाहिये ? यह कहां मिलता है ? उत्तर,—यह इस बातमें है कि नित्यप्रति खार्थपरताके विचार
और कार्य सर्वथा छोड़ दिए जाएं; इसे हमें औरोंके साथ साधारण वार्तालापमें बर्तना चाहिये; और यह अड़ी भीड़ और प्रलोभनके समयमें पाया जाता है।
हृदयसम्बन्धी वा हार्दिक गुप्तत्याग भी हैं जिनसे दोनोंको अर्थात् त्यागीको और उनको जिनके लिए वे त्याग किए जाते हैं बहुत कुछ लाभ पहुंच सकता है, यद्यपि इन त्यागोंके करनेमें बहुत कुछ यत्न करना और कष्ट उठाना पड़ता है । मनुष्य कोई बड़ी बात करनी चाहते है और कुछ ऐसे महान् त्यागके करनेकी इच्छा रखते हैं जो उनके बितसे बाहर है, परन्तु वे कोई अवश्य काम करना नहीं चाहते और वे उस वस्तुको जो उनके पास है
और जो त्यागनेके योग्य है कदापि त्यागना नहीं चाहते । जो बात तुम्हारे भीतर अतिदोपयुक्त है, जिम वातमें तुम्हारी मूर्खता प्रतीत होती है और जिस बातके करनेकी तुम्हें अत्यन्त लालसा होती है, सबसे पहले तुम उमे त्याग दो । इसमे तुम्हें शान्ति प्राप्त होगी । कदाचित् यह क्रोध या निर्दयता है । क्या तुम इस बातके लिए उद्यत हो कि क्रोधका भाव और वचन, निर्दयताका विचार और कार्य त्याग दो? क्या तुम इस बातके लिए उद्यत हो कि जो तुम्हें बुरा भला कहे, तुमपर आक्रमण करे, दोष लगाए और तुम्हारी साथ निर्दयतासे बर्त, इस सबको चुपकेसे सह लो और उस मनुष्यसे कुछ बदला न लो? वरञ्च क्या तुम इस बातके लिए उद्यत हो कि इन बुरे मूर्खताके कामोंके बदले उसके साथ दया और प्यारसे बर्तों और उसकी रक्षा करो? यदि ऐसा है, तो