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( २५ ) विदित करके प्रसन्न रह सकता है और सच्चा आनन्द प्राप्त कर लेता है। ___ यद्यपि इस संसारमें बहुत कुछ पाप और अज्ञान भरा हुआ है, बहुत कुछ कष्ट और दुःख सहना पड़ता है और बहुतसे आंसू बहाने पड़ते हैं; तथापि यह संसार बहुत कुछ पवित्रता और ज्ञानसे भरपूर है और इसमें बहुत कुछ शान्ति और प्रसन्नता विद्यमान है । देखो प्रत्येक पवित्र विचार और निष्काम कार्यका बहुधा शुभ परिणाम हुए विना नहीं रहता और यह परिणाम इस जीवनका प्रशस्त प्रयोजन है । मीठा बोलना, प्यारसे रहना, श्रद्धापूर्वक सुष्ठ रीतिसे अपने २ कृत्यको करना, कलह मेटना, पुराना विरोध छोड़ देना, कठोर वचनोंको क्षमा कर देना, मित्रका मित्रसे मिलाप होना, पापरूपी अन्धकारसे निकलकर धर्मके उज्वल मार्गमें आ जाना, बहुत कुछ देख भाल करके और ठोकरें खाकर पवित्र जीवन ग्रहण करना, अर्थात् दिव्य मार्गको प्राप्त कर लेना, ये सब सुखावह और मनोज्ञ प्रयोजन हैं । प्रत्येक मनुप्यको ऐसे प्रशस्त कार्य करनेका यत्न करना चाहिये ।
(ख) गुप्त त्याग या उत्सर्ग। त्यागके समान कोई वस्तु नहीं। त्यागसे तात्पर्य धर्म या पुण्यका त्याग नहीं है, वरञ्च अधर्म या पापका त्याग है। खार्थपूर्वक सुख और पापके हासमें धर्मकी वृद्धि, प्रमादके त्यागमें सत्य मार्गकी प्राप्ति होती है । देखो पुराने वस्त्र उतारकर ही नए वस्त्र