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जैनशतक। पुरान सुनि सांचे पंथ आव रे । जीवनकी दया पाल झूठ तज चोरी टाल, देख नी विरानी बाल तिसना
घटाव रे ॥ अपनी बड़ाई परनिंदा मत करै भाई, यही ई चतुराई मद मांसको बचाव रे । साध खटकर्म
धीर संगतिमें बेठ वीर, जो है धर्मसाधनको तेरे चित चाव रे ॥४४॥ ___ सांचो देव सोई जामें दोषको न लेश कोई,
वह गुरु जाके उर काहुकी न चाह है। सही धर्म , है वही जहां करुना प्रधान कही, ग्रंथ जहां आदि अंत । रु एकसो निवाह है ॥ यही जग रत्न चार इनको परख
यार! सांच लेहु झूठे डार, नरभीको लाह है । मानुप विवेक विना पशुकी समान गिना, तातें यह ठीक बात पारनी सलाह है ॥ ४५ ॥
सांच देवका लक्षण ।
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छप्पय ।
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जो जगवस्तु समस्त, हस्ततल जेम निहार । जगजनको संसार, सिंधुके पार उतारै ।।
आदि-अंत-अविरोधि, वचन सबको सुखदानी । १ गुन अनंत जिहंमाहिं, रोगकी नाहिं निशानी ॥ माधव महेश ब्रह्मा किधी, वर्धमान के बुद्ध यह ।
१ स्त्री। २ दया । Hamrosaasaaves SSCGVYeapravaavesvaranasarasvent
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