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अनुसार हों और न्यायपर आश्रित हों ५. निष्कपटता, सरलता और सत्यवादिता।
१. आज्ञानुवृत्ति या वश्यताके अर्थ पाठशालाके बनाए हुए नियमों के अनुसार चलना है । इस कृत्य वा गुणका होना मनुष्यसम्बन्धी समाजके सकल भागोंमें आवश्यक है। इसके विना समाज ही नहीं रह सकती । फौजी सिपाहियों के लिए भी यह सबसे उत्तम गुण है; उन्हें चाहिये कि चुप चाप होकर अपने अफसरका हुकम मानें और तनिक भी चूं न करें, नहीं तो सारा प्रबन्ध उलट पुलट हो जायगा और खलबली मच जाएगी । देखो अपने माता पिताके कहेमें चलना अच्छे बालकोंका सबसे पहला कृत्य है । वश्यता ईश्वरका सर्वोपरि न्याय है । इसी प्रकार छात्रोंमें वश्यताका होना अतीव आवश्यक है, क्योंकि इसके विना पाठशालाका प्रबन्ध और शासन रखना बड़ा कठिन है, और जहां शासन नहीं वहां किसी प्रकारकी ठीक २ शिक्षा हो नहीं सकती। पाठशालामें इस गुणका होना अतीव श्लाघनीय है, क्योंकि और सब गुण इसीपर निर्भर हैं और इसीसे उत्पन्न होते है। सोचो यदि तुम अपने गुरु वा शिक्षककी आज्ञा न मानोगे, तो फिर तुम उसके उपदेशका कुछ भी आदर न करोगे और उसकी उत्तमसे उत्तम और उपयोगी शिक्षापर तनिक भी ध्यान न दोगे । इससे तुम्हें आज्ञा उल्लंघन करनेकी बान पड़जाएगी और तुम अपना समय वृथा खोने लगोगे, और इस प्रकार शिक्षासे तुम्हारे आचरण नहीं सुधरेंगे, वरच्च शिक्षाका तुमपर उलटा प्रभाव पड़ेगा और तुम समाजके लिए भार और कष्टका कारण होगे ।
फिर यह भी याद रखना चाहिये कि आज्ञाभा करनेसे हमारा