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आत्मसम्मान जाता रहता है । यदि हम सुशील और नियमों के अनुसार चलनेवाले हैं, तो हमपर उत्तम रीतिसे शासन किया जाएगा; और यदि हम नियमोंको उल्लंघन करेंगे और इस कारण दुर्विनीत और दुराचारी बनेंगे, तो हमपर कुरीतिसे शासन किया जाएगा और हमें दण्ड मिलेगा । किसी विभागके अध्यक्षको अ. त्यन्त ताड़ना करनी और कठोर नियम बनाने पड़ेंगे, यदि जिन लोगोंसे उसे बरतना है वे अन्यायी दुराचारी और दुर्दान्त हों । इस लिए आत्ममान रखने और अपनेसे बड़ोंकी आशीर्वाद लेनेके लिए हमें आज्ञाकारी होना चाहिये । __ आज्ञानुवर्ती होनेसे तुम आगे जाकर अपने जीवन में ऋद्धि सिद्धि प्राप्त करोगे । तुम्हें यह भी याद रखना चाहिये कि आज्ञापालन और मकल गुणोंकी नाई दो परमकोटियोंका मध्यभाग है, अर्थात् इसके एक ओर आज्ञाभंग है और दूसरी ओर दासत्व है और यह इन दोनोंसे भिन्न है और इनके मध्यमें स्थित है । तुम्हें चाहिये कि आज्ञानुवृत्तिके उत्तम गुणको अपनेमें धारण करो और उसके अनुसार चलो।
२. एक और ऐसा ही आवश्यक गुण कालानुवृत्ति है । जीवनके सब कामोंमें इस गुणका होना अवश्य है । यदि यह न हो तो प्रत्येक वस्तुमें खलबली पड़जाए । छात्रोंमें इस गुणका होना अतीव आवश्यक है । कालानुवृत्तिसे हमारा तात्पर्य यह है कि प्रतिज्ञाके समयका ध्यान रक्खा जाए, यह नहीं कि एक बार वा दो बार वा कभी २, वरञ्च सदाके लिए ध्यान रक्खा जाए; यदि वह प्रतिज्ञाकी अवधि कुछ कालतक वा सदाके लिए हो तो उस समयतक बराबर ध्यान रखना चाहिये । यदि कोई छात्र पाठशा