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ही हृदयंगम और योग्य होते हैं। देखो तीक्ष्णबुद्धि बिरलोंहीके भाग्यमें होती है और धनसम्पदा भी किसी २ को मिलती है, परन्तु यह सब लोग कर सकते है कि वे अपने २ अङ्गीकार किये हुए कृत्यको पूरे २ बल और हृदयसे करें । अपना २ कृत्य करना लोगोंका परम धर्म है; इस कृत्यका करना, चाहे एक छोटीसी बात प्रतीत हो. अवश्य है और जो कोई अपना कृत्य करता है वह इसके बदलेमें किसी प्रकारकी श्लाघा वा पारितोषिकका अधि. कारी नहीं है. परन्तु केवल कृत्य और निष्काम कृत्य होनेके कारण आप ही आप उसका उत्तम फल मिलेगा ! भक्त और श्रद्धालुका परिश्रम कभी वृथा नहीं जाता, उसका फल अवश्य उसको मिलेगा, विपरीत इसके नीक्ष्णबुद्धिवालोंके हार कुम्हलाकर मुरझा जाते है और निरे भाग्यवालोके पारितोषिक वृथा आडम्बर हैं।
इम समाग्मं. उसकी रचनाके अनुसार, प्रत्येक मनुप्यके जीवनकी, सामाजिक और गृही होनेके कारण. अपनी अलग २ दशा है। कुछ पुरुप तो राज्य करते है, कुछ सेवक हैं, कुछ शिक्षक वा गुम है और कुछ शिष्य वा चेले है इत्यादि । इन कई प्रकार के सम्बन्धोंसे अनेक प्रकारके ऋण और कृत्य उत्पन्न होते हैं । जीवनका बड़ा उद्देश्य और लाभ यह है कि अपने ही आनन्दको न बढ़ाया जाए वरञ्च औरोंके आनन्द और सुखको अधिक किया जाए और यह तब ही हो सकता है जब हम अपने २ कृत्योंको श्रद्धा और भक्ति से पूरा करें ।। __ यहां हम छात्रसम्बन्धी कुछ कृत्य वर्णन करते हैं । छात्रोंको ये कृत्य करने योग्य है-१. आज्ञानुवृत्तिः २. कालानुवृत्तिः (कालानुवर्तिता) ३. परिश्रम ४. परस्पर एकता और प्रेम जो मीतिके