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कविवर भूधरदासविरचित
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अजा फिर जाये || फेरि भये कुकड़ा कुंकड़ी, इन सात भवांतरमें दुख पाये । चूनमई चरणायुध मार, कथा सुन संत हिये नरमाये ॥ ८७ ॥ सुबुद्धिसखी के प्रति वचन । मनहर कवित्त |
कह एक सखी स्थानी सुनरी सुबुद्धि रानी, तेरो पति दुखी देख लागै उर और है । महा अपराधी एक पुग्गल है छहों माहिं, सोई दुख देत दीखे नानपरकार है | कहत सुबुद्धि आली? कहा दोष पुग्गल को, अपनी ही भूल लाल होत आप ख्वार है । "खोटो दाम आपनो सराफै कहा लगै वीर," कोऊको न दोष मेरो भोंदू भरतार है ॥ ८८ ॥
गुजराती भाषामें शिक्षा । करिखा ।
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ज्ञानमय रूप रूंडो सदा सासतो, ओलखे क्यों न सुखपिंड भोला | वेगळी दहंथी नेह तूं शुं करै, एहनी टेव जो मेह ओला ॥ मे मान भवदुक्ख पायी पंछी, चैन लोध्यो नथी एक तोला । वेळी दुख वृच्छनो बीज बने, आपथी आपने आप बोला ॥ ८९ ॥
१ मुर्गी । २ मुर्गा । ३ शूल, ४ सुन्दर । ५ पहिचानें । ६ पुथकू । ७ देहसे । ८ क्या । ९ मेरुके प्रमाण । १० पाये । ११ पीछे । १२ मिला । १३ नहीं । १४ फिर । १५ बोता है । १६ और ।