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बुढ़ापा।
मत्तगयंद (संवैया )। दृष्टि घटी पलटी तनकी छवि, बंक भई गति लंक नई है। रूस रही परनी घरनी अति, रंक भयो परयंक 0 लई है | कॉपत नार वह मुख लार, महामति संगति
छार दई है । अंग उपंग पुराने परे, तिशना उर और नवीन भई है ॥ ३८॥
कवित्त मनहर । रूपको न खोज रह्यो तर ज्या तुपार दह्यो, भयो पतझार किधी रही डार सूनीसी। कुबरी भई है।
कटि दूवरी भई है देह, ऊबरी इतेक आयु मेरमाहिं 1. पूनीमी ॥ जोवनने विदा लीनी जराने जुहार कीनी,
हीनी भई सुधि बुधि सबै वात ऊनीसी । तेज , घट्यो ताव घट्यो जीतवको चाव घट्यो, और सब
घट्यो एक तिस्ना दिन दूनीसी ॥ ३९॥ है अहो इन आपने अभाग उद नाहिं जानी,
वीतरागवानी सार दयारस भीनी है । जोवनके जोर थिर जंगम अनेक जीव, जाने जे सताये कछु करुनान कीनी है । तेई अब जीवरास आये परलोकपास, लेंगे बैर देंगे दुख भई ना नवीनी है । उनहीके भयको
१ विवाहित । २ चार पाई। ३ गर्दन । U2 Voever arriver Verbrecen cover leveren van eXpremoremos
ق هری تقدیر قرمرة، می برهنه را در کره رهه مه ره ده ره وه ره ده ره قرارش را
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