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मुनिवंशदीपिका । नाथ ईश्वरको जन्मयोग यथा है । प्रभुने भवांतरमैं जैसे जैसैं तप कीये,जैसे दान दीये जातें जन्ममर्ण हता है। देश वर्ण वंश असि मसि कृषि दीक्षा निरवान इतिहासनको ठीक ठीक पता है ॥ ४२ ॥
गुणभद्राचार्य । गुणभद्रसरि भए गुणभरपूर जानैं, कियौ भर्म दुरि रच्यो उत्तरपुरान है । भूत वा भविष्यत वरतमान तीर्थराज, तनैं मात तात गोत कुलको कथान है। आयु काय जनम पुरीको भिन्न भिन्न भेद, अंतराल भोग जोग पानौं ही कल्यान है। वर्तमानकालमैं कलंकी जेते होनहार, रचना प्रलैको जामैं ठीक ठीक ज्ञान है ॥४३॥
रविषेण और जिनसेन । सिरी रविषेण मुनिरायनैं रच्यो है सिरी, रामको पुराण जाके सुनैं कर्म कटें हैं । पुन्य और पापको प्रगट फल जामैं देखि, ज्ञान पाय जीव भ्रम भावनतें हटें हैं ॥ पुन्नाटक गणमैं भये हैं पुनि दूजे सिरी, जिनसेन मुनि जाकौं सब जीव र₹ हैं। रच्यो हरिवंशको पुराणतनौं सुवखान, जामैं साधु संतनके चित्त आय डटें हैं ॥ ४४ ।।
___गमकाचार्य और वादिराजमुनि । भये हैं गमक नाम साध तजिकै उपाधि, ज्ञानकी चम१ हरिवंशके कर्ता जिनसेन और आदिपुराणके कर्ता जिनसेन एक ही है। यह बात अब निर्विबाद सिद्ध हो चुकी है । पहले कविवर सरीखा बहुत लोगोका ख्याल था । २ गमक नामके आचार्य नहीं हुए है। नयनसुखजीने वृन्दावनजीकी गुर्वावलीका 'वंदामि गमक साधु जो टीकाके धरैया'