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कविवर बाबू वृन्दावनजी कृत । १९ वरनाश्रमादिकी क्रिया कहैं हैं संहिता ।। वसुनंदि वीरनंदि यशोनंदि संहिता । इत्यादि बनी हैं दशों परकार संहिता ॥ २३ ॥ परमेयकमलमारतंडके हुए कर्ता । माणिक्यनंदि देव नयप्रमाणके भर्ता ॥ जैवंत सिद्धसेन सुगुरुदेव दिवाकर । जैवादिसिंह देवसिंह जैति यशोधर ॥जैवंता२४॥ श्रीदत्त काणभिक्षु और पात्रकेसरी । श्रीवज्रसूर महासेन श्रीप्रभाकरी ॥ श्रीजटाचार वीरमेन महासेन हैं। जैमेन शिरीपाल मुझे कामधेन हैं । जैवंत ॥२५॥ इन एक एक गुरूने जो ग्रंथ बनाया । कहि कौन सके नाम कोई पार न पाया । जिनमेन गुरूने महापुराण रचा है। मरजाद क्रियाकांडका सब भेद खचा है ॥ २६ ॥ गुणभद्र गुरूने रचा उत्तरपुराणको। सो देव सुगुरुदेवजी कल्यानथानको ॥ रविसंन गुरूजीने रचा रामका पुरान । जो मोह तिमर भाननेको भानुके समान ।। जै० ॥२७॥ पुन्नाटगणविपं हुए जिनसेन दूसरे। हरिवंशको बनाके दास आसको भरे ॥ इत्यादि जे वसुवीस सुगुण मूलके धारी ।
निग्रंथ हुए हैं गुरू जिनग्रंथके कारी । जैवंत ॥२८॥ x १ ये दूसरे जिनसेन नहीं है किंतु आदिपुराणके कर्ता ही है।