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अरनिप्रमाण होती है और उन मनुष्योंकी आयु पहले कालमें तीन पल्य, दूसरेमें दो पल्य, तीसरेमें एक पल्य, चौथेमें एक करोड़ वर्ष पूर्व पांचवेमें एकसौ वीस वर्ष और छठेमें बीस वर्ष होती है ॥ १० ॥ ११॥
पहले दो काल बीत जानेपर और तीसरे कालमें पत्यका आठवाँ भाग शेष रहजानेपर प्रतिश्रुति, सन्मति, क्षेमकर, क्षेमंधर, सीमंकर, सीमंधर, विमल वाहन, चक्षुप्मान, यशम्बान, अभिचन्द्र, चन्द्राभ, मरुदेव, प्रसेनजित और नाभिराय इन चौदह कुलकरोंकी उत्पत्ति हुई। इन्होंने अपने प्रतापसे हा ! मा : धिक् ! इन शब्दोंसे ही पृथ्वीका शासन किया अर्थात् उन्हें यदि कभी दंड देनेकी आवश्यकता होती थी, तो इन शब्दोंका व्यवहार कर. ते थे । पहले पांच कुलकरोंने ' हा शब्दसे दूसरे पांचने हा! मा:
और अन्तके पांच कुलकरोंने हा ! मा ! और विक शब्दोंसे राज्य शासन किया था ॥ १६॥
पहले कुलकरने सूर्यचन्द्रमाके प्रकाशसे जो लोग भयभीत हुए थे उनका भय निवारण किया। दूसरेने तारागणके प्रकाशसे भयभीत लोकोंका भय निवारण किया। तीसरेने सिंह सदिकसे जो लोग भयभीत हुए थे उनका भय निवारण किया। चौथेने अन्धकारके भयको दीपक जलाने की शिक्षासे दूर किया। पांचवेने कल्पवृक्षोंके स्वत्वकी मर्यादा बांधी। छठेने अपनी नियमित सीमामें शासन कर
१ कनिष्टिकाविहीन मुठी बंधे हुए हाथके मापको अरलि कहते है । यह प्रमाण हाथसे कुछेक छोटा होता है ।
२ श्रीवृषभदेवको भी पन्द्रहवां कुलकर माना है.