________________
:: उद्भव : एक कल्पाकुर का
श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ
स्वप्न संकेत ब्राह्ममुहर्त का समय । टिमटिमाते तारे अस्त होने को प्रस्तुत थे । मन्द-सुगन्ध समीर शरीर में पुलक भर रहा था। केसरबाई अपनी शैया पर अद्धनिद्रित दशा में लेटी थी। पलकें अलसाई
और मुंदी हुई थीं। एकाएक उन्हें पत्र-पुष्प और फलों से लदा हुआ एक विशाल आम्रवृक्ष दिखाई दिया। पीले-पीले पके हुए रसाल फलों के दर्शन से केसरबाई के मन-प्राण रससिक्त हो गए। उसने अचकचाकर आँखें खोल दीं। आम्रवृक्ष लुप्त हो गया। वह समझ गई कि यह स्वप्न था। विवेकिनी माताएं शुभ स्वप्न देखने के वाद सोती नहीं। केसरबाई भी शय्या पर बैठ कर प्रभुस्मरण करने लगी।
गंगारामजी की आँखें खुली तो पत्नी को बैठे देखा तो पूछा-- "क्या बात हो गई ? तुम्हारी नींद कैसे खुल गई ?" केसरबाई ने अपना स्वप्न सुना दिया। गंगारामजी ने कहा
"यह तो बड़ा शुभ स्वप्न है । तुम्हारी कुक्षि से कोई ऐसा पृण्यशाली जीव जन्म लेगा जिसकी शीतल छाया में जगत सुख-शांति का अनुभव करेगा।"
स्वप्न फल जानकर केसरबाई बहुत हर्षित हुई। वह अपने गर्भस्थ शिशु को धार्मिक संस्कार देने को प्रस्तुत हो गई।
माता की कुक्षि प्रकृति की अद्भुत प्रयोगशाला है। इसी में राम, कृष्ण, जैसे सुसंस्कारी शिशुओं का निर्माण होता है तो रावण, कंस जैसे कुसंस्कारियों का भी । तामसी वत्ति वाले भी इसी प्रयोगशाला में निर्मित होते हैं, तो सात्त्विक वृत्ति वाले भी। इनके निर्माण में माता के आचारविचारों का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त वंश-परम्परा, माता-पिता की शारीरिक एवं मानसिक वृत्तियाँ, उनके आचार-विचार आदि का भी प्रभाव पड़ता है। इच्छानुकूल योग्य संतान की चाह वाली माताएँ इन सभी बातों के प्रति सजग सावधान रहती हैं। गर्भस्थ शिशु का प्रभाव भी माता पर पड़ता है। धर्मात्मा जीव के गर्भ में आने पर माता की प्रवृत्ति सहज ही धार्मिकता की ओर उन्मख हो जाती है।
केसरबाई स्वयं भी सदाचारिणी थीं और गर्भस्थ जीव भी धर्मात्मा था। परिणामस्वरूप केसरबाई का मन धर्म में रमने लगा। गर्भस्थ शिशू और माता दोनों ही परस्पर एक-दूसरे पर प्रभाव डाल रहे थे। माता का अन्तर्मन अधिकाधिक धर्ममय होता जा रहा
जन्म कुण्डली था। वह बड़े यत्न से गर्भ की परिपालना कर रही थी।
५
संवत् १९३४, कार्तिक सुदी १३, रविवार का दिन । ५० घटी, १३ पल बीतने के बाद, अश्विनी नक्षत्र के तृतीय चरण में माता केसरबाई ने एक शिशु को जन्म दिया।
शिशु के जन्मकालीन ग्रहों की स्थिति इस प्रकार थी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org