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: ७ : एक शाश्वत धर्म दिवाकर
श्री जैन दिवाकर स्मृति-ग्रन्थ
सादित।
लगी । एक मंच से ही त्रिमूर्ति (दिगम्बर आचार्य सूर्यसागर जी महाराज, श्वेताम्बर मूर्तिपूजक आचार्य आनन्दसागर जी महाराज और आपश्री) के प्रवचन होने लगे। काश ! आप कुछ दिन और जीवित रह जाते तो त्रिमूर्ति सर्वतोभद्र (चतुर्मुखी) बन जाती है । तेरापन्थी आचार्य तुलसी भी इस मंच पर विराजमान दिखाई देते।
विक्रम सं० १९८३ में जब आप सादड़ी में विराजमान थे तब 'जैन प्रकाश' के सम्पादक झवेरचन्द जादवजी कामदार ने आपकी सेवा में उपस्थित होकर आपके एकता सम्बन्धी विचारों को जानने की विनम्र इच्छा प्रकट की। आपने कहा कि एकता के लिए मूलभूत आवश्यकताएँ ये हैं(१) सभी साधु-साध्वियों का एक स्थान पर सम्मेलन हो।
साधुओं की समाचारी और आचार-विचार प्रणाली एक हो। (३) स्थानकवासी संघ की ओर से प्रमाणभूत श्रेष्ठ साहित्य का प्रकाशन हो । (४) परस्पर एक-दूसरे की निंदा और टीका-टिप्पणी न करें। (५) पर्व-तिथियों का सर्वसम्मत निर्णय हो। आपके ये सभी सुझाव व्यावहारिक थे और आज भी इनकी उपयोगिता असंदिग्ध है।
आपकी कल्पना थी, जैन समाज की सांस्कृतिक एकता की और उसे साकार बनाने के लिए महावीर जयंती (चैत्र सुदि १३) का उत्सव सामूहिक रूप में मानने का प्रवर्तन आपश्री ने किया। संघ एकता की भावना से ही जहाँ भी 'महावीर जयन्ती' का प्रसंग आया उन्होंने इस पर्व को सम्मिलित रूप से मनाने की प्रबल प्रेरणा दी। उज्जैन, अमलनेर, आगरा आदि स्थानों पर दिगम्बर, श्वेताम्बर, स्थानकवासी सभी संप्रदायों ने मिल-जुल कर भगवान महावीर का जन्म दिवस मनाया । आज प्रायः सभी स्थानों पर यह परम्परा प्रवर्तित हो रही है, जिसका मूल श्रेय आप ही को है।।
हिन्दू जाति के संगठन के लिए लोकमान्य तिलक ने भी इसी प्रकार 'गणपति उत्सव' और 'शिवाजी उत्सव' का आयोजन महाराष्ट्र में किया था, जो आज भी चल रहे हैं।
संगठन निर्माण के प्रेरक जैन दिवाकर जी महाराज संगठनों के महत्त्व को खूब समझते थे। समाज-सुधार और मंगलकारी कार्यों का संचालन इन्हीं संगठनों के द्वारा होता है । उन्होंने बालोतरा, ब्यावर, पीपलोदा, उदयपुर आदि अनेक स्थानों पर 'महावीर जैन मंडल' या 'जैन मंडलों' की स्थापना करवाई। रतलाम में जैनोदय पुस्तक प्रकाशक समिति की स्थापना हुई, जहाँ से सत्साहित्य का प्रकाशन होता रहा। रायपुर (बोराणा), देलवाड़ा, सनवाड़, गोगुंदा आदि स्थानों पर बालकों को धार्मिक शिक्षा
। की स्थापना हुई । जोधपुर में महिलाश्रम, अहमदनगर में 'ओसवाल निराश्रित फंड, मन्दसौर में 'समाज हितैषी श्रावक मंडल', चित्तौड़गढ़ में 'चतुर्थ जैन वृद्धाश्रम' आदि अनेक संस्थाएँ आपश्री की प्रेरणा से समाज के उपकारी कार्यों के लिए निर्मित हुई।
जैन दिवाकर जी महारज की प्रतिभा बहुमुखी थी। वे प्रसिद्धवक्ता, वाग्मी, महामनीषी, जगद्वल्लभ, क्रान्तदर्शी और युगपुरुष संत थे। वे दिवाकर के समान ही चमके । उनकी प्रभा आज तक जन-जन को प्रेरणा देती रही है और आगे भी देती रहेगी।
ऐसे आध्यात्मिक दिवाकर को जन्म देने का श्रेय मालव धरा के एक छोटे से कस्बे नीमच को प्राप्त हमा है। आपके जन्म से आपकी जन्मभूमि धन्य हो गई।
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