Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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बताया घरकादयो यावद् गृहस्था धन्येन सार्थवाहेन-एपमुक्ता साना 'जा' यावदपन्य सार्थवाह प्रतीक्षमाणान्विति । तत सल धन्यः माशाह शोभने तिथि फरणनक्षोशुभदिवसे विपुलमशनादिक चतुर्विधाहारम् उपस्कारयतिम्-निष्पादयति उपस्कार्य मित्रज्ञातिस्वननसम्बन्धिपरिजनान आमन्त्रयति, भोजन मोजयतिकार ने उन चरक आदि से लेकर गृहस्थ पर्यन्त के मनुष्यों में जिसके पास छत्ता आदि नही या उसे छत्ता दिवा यारत् जिस के पास कलेवा नही था उसको कलेवा-मार्ग भोजन-दिया। पाद में उसने उन सबसे कहा हे देवानुपियों ! तुम यहां से चलो और मुरय उद्यान में मेरी प्रतीक्षा फरते हुए ठहरे रहो-(तपण ते घरगाय जाव मिहत्या य धण्णेण सत्य घाहेण एव वुत्ता समाणा जाव चिटनि, ताण घण्णे सत्यवाहे मोहणसि त्तिहिकरणनम्वत्तसि विउल असण ४ उवम्बडावेह, उचवडाविता मित्तनाइ० आमतेइ, आमत्तित्ता भोयण भोयावेड, भोयायित्ता आपु च्छइ, आपुच्छित्ता सगडीसागड जोयावेड, जोयवित्ता चंपानगरीओ निग्गच्छह ) इस प्रकार धन्यसार्यवाह के द्वारा कहे गये वे चरकादि गृहस्थ पर्यन्त समस्तजन वहा से चलकर मुख्य उद्यान में गये-और धन्यसार्थवाह की प्रतीक्षा करते हुए वहां ठहर गये । धन्यसार्थवाह ने शुभ तिथि, करण, एव नक्षत्र में विपुल मात्रा में अशन आदि रूप चारों प्रकार का आहार निष्पन्न करवाया। जय आरार निष्पन हो
ત્યાર પછી ધન્ય સાર્થવાહે તેઓ ચરક વગેરેથી માડીને ગૃહસ્થ સુધીના બધા માણસેમાથી જેની પાસે છત્રી વગેરે ન હતી તેને છત્રી વગેરે અને જેની પાસે માર્ગ માટેનું ભેજન ન હતું તેને ભોજન આપ્યું ત્યાર બાદ તેણે બધા ને કહ્યું કે હે દેવાનુપ્રિયે! તમે અહીંથી મુખ્ય ઉદ્યાનમાં જાઓ અને ત્યાં મારી પ્રતીક્ષા કરો
(तएण ते चरगाय जार गिहत्थाय धण्णेण सत्थनाहे ण एव वुत्ता समाणा जाव चिट्ठति, तएण धण्णे सत्यवाहे सोहणसि तिहिकरणनक्खत्त सि विउल असण ४ उवक्खडवेइ, उपक्खडावित्ता मित्तणाइ आमतेइ, आमतित्ता भोयणं भोयावेइ, भोयावित्ता आपुच्छइ, आपुच्छित्ता सगडीसग्गड जोयावेइ, जोयावित्ता चंपानगरीओ निग्गच्छद)
આ રીતે ધન્ય સાર્થવાહ વડે આજ્ઞાપિત થયેલા ચરક ગૃહસ્થ વગેર બધા માણસો ત્યાથી મુખ્ય ઉડાનમાં ગયા અને અન્ય સાથ વાહની રાહ જોતા तमा त्या शया - सापाई शुभ तिथि, ४२६), अने
। પુષ્કળ પ્રમાણમા અશન વગેરે રૂપ ચારે જાતના આહારે *