Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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तामेकपा
यथा अधः यथापूर्व द्वाररातीमागता तथाऽत्रापि को यम् यावत् सदिशन्तु अत्र यावदित्यनेनैव गोभ्यम्-द्वारपतों नगरीमागत्य कृष्णेन सत्यता स्नाता कृतभोजना सुखासनगताभवत् इति, ततस्ता कृष्ण पृच्छति सदिशन्तु =थयन्तु खलु हे पहुणा एव युक्त समाणी, रत्विग्ध दुरुड, दुरहित्ता जा रहा जाब सदिसतु ण पित्या । किमागमणपओयण ? तरण सा कोंती कण्ह घासुदेव एव वयासी एव यलु पुत्ता। तुमे पत्र पढना णिविसथा आणत्ता, तुमचण दाहिणभरह जान विदिम वा गच्छतु । तष्ण से कण्हे वासुदेवे कोंतीदेनि एवं वयामी अपूरयणाण पित्या ! उत्तम पुरिसा वासुदेवा, पलदेवा, चारही त गच्छतु ण देशणुपिया । पच पडवा दारिणिल वेराउल तत्थ पट्टमहूर णिवेसतु मम अद्विसेवगा भवतु ति कट्टु कोंतीदधिं सपरिह, सम्माणेह, जान पडिसिज्जेह) पाडु के द्वारा इस प्रकार कही गई वह देवी हाथी पर चढी और चढ कर जिस प्रकार पहिले यह द्वारवती आई थी उसी तरह अब भी यह वा पहुंची। यहा यावत् शब्द से इस प्रकार पाठका सबन्ध लगा लेना चाहिये जन कुनी द्वारावती नगरी में आई-तप कृष्ण वासुदेवने उनका खूब मनमाना सत्कार किया। बडे ठाट घाट से उनका प्रवेशोत्सव मनाया - | कुतीने स्नान आदि दैनिक कार्यों से निबट कर आनद के सार चतुर्वि आहार किया बाद में विश्राम के निमित्त सुग्वासन पर
(तरण सा कोंती पडुणा एव बुत्ता समाणि, इत्थिखध दुरुहः, दुरूहित्ता जदा हेट्ठा जाव सदिसतु ण पिउत्था | स्मिोगमणपओयण ? तरण सा कौती कण्ह वासुदेव एव वयासी- एव खलु पुत्ता ! तुमे पच पडवा णिन्निसा आणत्ता, तुम चण दाहिणड्डू भरह जाव विदिस वा गच्छतु ? तरण से कहे वासुदेवे कौती देवि एव चयासी - अपूई वयणा ण विउत्था उत्तमपुरिसा देवा, वळदेवा, चकवडी त गच्छतु ण देवाणुपिया ! पच पडवा दाहिणिल वेलाउल तत्थ पडुमहुर णिवेसतु अनगा भवतु ति कट्टु कौती देवि सकारे, सम्माणेड़, जान पडिविसज्जेइ)
આ પ્રમાણે પાડુ વર્ડ આજ્ઞાપિત થયેલી કુ તી દેવી હાથી ઉપર સવાર થઈ અને સવાર થઇને પહેલા જેમ તે દ્વારાવતી નગરી ગઈ હતી તેમજ અત્યારે પણ પહેચી અહી યાવત્ શબ્દથી આ જાતને પાઠે સમજવા જોઇએ કે જ્યારે કુ તી દ્વારાવતી નગરીમા આવી ત્યારે કૃષ્ણુવાસુદેવે તેમને ખૂબ જ સત્કાર કર્યો અહુ જ ઠાઠથી તેમના પ્રવેશે! સવ ઉજવ્યે કુતીએ પણ સ્નાન વગેરે નિત્યકમાંથી પરવારીને સુખેથી ચતુર્વિધ આહાર કર્યો
વિશ્રામ