Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1178
________________ ८१६ www.wawek मोक्ष सम्प्राप्तेन द्वितीयस्य वर्गस्य पश्चाध्ययनानि महप्तानि तद्यथा-शुम्मा १, निशुम्भा २, रम्भा ३, निरम्भा ४, महना ५, । यदि यह हे मदन्त । श्रमणेन सम्मान द्वितीयस्य वर्गस्य पञ्च-अ ययनानि भक्षप्तानि द्वितीयरूप खलु भदन्त । वर्गस्य प्रथमा ययनस्य कोऽर्थः मज्ञप्तः ? | स्वामी प्राह-ए जनू | समणेण जान सपत्तेण दोघस्स वग्गस्म पच अक्षयणा पण्णत्ता) हे भदत ! मुक्ति स्थान को प्राप्त हुए श्रमण भगवान महावीर ने द्वितीय वर्ग का उत्क्षेपक प्रारभ किस रूप से प्ररूपित किया है-तन सुध स्वामी ने उनसे कहा- हे जयू ! सुनो यात् मुक्ति शन को प्राप्त हुए उन श्रमण भगवान् महावीर ने इस द्वितीय वर्ग के पांच अध्ययन प्ररूपित किये हैं- ( त जहा ) वे इस प्रकार हैं- (सुभा, निसुभा, रभा, निरभा मरणा, जण भते । समणेण जाव सपतेण धम्मकहाणं दोचस्स वग्ग स्स पच अज्जपणा पण्णत्ता, दोचस्सण भते वग्गम्म पढमज्झयणस्स के अड्डे से एच खलु जजू ! तेण कालेन तेण समरण रायगिहे यरे, गुणसिीलए देइए-सामी समोसढे परिसा णिग्गया जाव पज्जुवा सइ) (१) शुम्भा, (२) निशुभा (३) रम्भा, (४) निरभा (५) मदना । अब जत्रु स्वामी पुनः सुधर्मा स्वामी से पूछते हैं कि हे भदत ! यदि यावत् मुक्ति स्थान को प्राप्त हुए श्रमण भगवान् महावीरने द्वितीयवर्ग जबू ! ममणेण जान मपत्तेण दोच्चस्स वग्गस्स पचअक्षयणा पण्णत्ता ) હું બદન્ત ! મુક્તિસ્થાનને પ્રાપ્ત કરેલા શ્રમણ ભગવાન મહાવીરે ખીજા વના ઉલ્લેપક-પ્રાર ભ~તયા રૂપથી પ્રરૂપિત કર્યાં છે ? ત્યારે સુધર્માં સ્વામીએ તેમને કહ્યુ કે હું જ બૂ ! સાભળેા, યાત્ મુક્તિસ્થાનને વરેલા તે શ્રમણ ભગવાન મહાવીરે આ ખીન્ન વર્ગના પાચ અધ્યયના પ્રરૂપિત કર્યા છે ( त जहा ) ते या प्रभाले छे ( सुमा, निसुभा, रभा, निरमा, मयणा, जरण भते ! समणेण जान सप तेज धम्मकहाणं दोचस्प वग्गस्स पच अज्झयणा पण्णत्ता, दोचस्स न भते वग्गस्स पढमज्झयणस्स के अट्टे पण्णत्ते । एव खलु जबू । तेण कालेन तेण समरण रायगियरे, गुणसीलिए चेइए- सामी समोसढे परिमा णिग्गया जाव पज्जुवासइ) (१) शुला, (२) निशुला, ( 3 ) २भा, (४) निरला, (4) महना हवे સ્વામી કરી સુધર્મા સ્વામીને પૂછે છે કે હૈ ભદન્ત ! જે યાવત્ મુક્તિ જ

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