Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1179
________________ अमगारधर्मामृतपिणी टी० शु २ च २ मा निशुभ दिदेवीवर्णनम् ૭ 6 खल हे जम्बूः ! तस्मिन् काले तस्मिन् समये राजगृह नगरम् । गुणशिलकं चैत्यम् | स्वामी नर्द्धमानस्वामी समान परिपन्निर्गता यावत्पर्युपास्ते । तस्मिन् काले तस्मिन् समये शुम्भा देवी पविचञ्चाया राजधान्या शुम्भावतसके भने शुम्भे सिंहासने 'कालीगमरण ' कालीगमेन = काली देवी सदृशपाठेन यावत्नाटय विधिमुपद यात् मनिगता । पुन्वभवपुच्छा' पूर्वभवपृच्छा = गौतमस्वामी शुम्भा देव्याः पूर्वपर पृच्छति । भगवान् कथयति - श्रावस्ती नगरी । कोष्ठक चैत्यम् । जितशत्रू राजा । शुम्भो गाथापतिः । शुम्भश्रीर्भार्या । शुम्भा दारिका । शेप यथा काल्या काली दारिकाया वर्णन तयात्रापि विज्ञेयम्, नगर = विशेस्त्वके पांच अध्ययन प्ररूपित किये हैं तो हे भदत ! द्वितीयवर्ग के प्रथम अध्ययन का उन्होंने क्या अर्थ प्रतिपादित किया हैं ? इस प्रश्न का उत्तर देने के लिये सुधर्मा स्वामी उनसे इस प्रकार कहते हैं कि हे जबू | - उस काल और उस समय में राजगृह नाम का नगर था उसमें गुणशिलक नाम का उद्यान था । उसमें वर्द्धमान स्वामी आये । प्रभु का आगमन सुनकर वहां की समस्त जनता उन्हें वदन के लिये अपने २ स्थान से चल कर उस गुणशिलक उद्यान में आई । प्रभु ने सबको धर्म का उपदेश दिया परिषद् उपदेश सुनकर प्रभु की यावत् पर्युपासना की । (तेणं काणं तेण समण्ण) उसी काल और उसी समय में ( सुभादेवी चलिचचाए रामहाणीए सुभवडेसए भवणे सुभसि सीहा ससि कालीगमण जान नट्टविहि उवदसेत्ता जाव पडिगया पुग्वभव पुच्छा, साथी, कोट्ठए चेइए जियसत्तू राया, सुभे गाहावई सुभ સ્થાનને પ્રાપ્ત કરેલા શ્રવણુ ભગવાન મહાવીરે ખીજા વર્ગના પાચ અધ્યયન પ્રરૂપિત કર્યો તાહે ભદન્ત ! બીજા વર્ગના પ્રથમ અધ્યયનને તેમણે શા અર્થે પ્રતિપાદિત કર્યાં છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમા શ્રી સુધર્માં સ્વામી તેમને આ પ્રમાણે કહે છે કે હું જમૂ! તે કાળે અને તે સમયે રાજગૃહ નામે નગર હતું તેમા શિલ નામે ઉદ્યાન હતુ તેમા વમાન સ્વામી પધાર્યાં પ્રભુનુ આગમન માભળીને ત્યાના બધા નાગરિકા તેમને વદના કરવા માટે પોતપોતાને સ્થાનેથી નીકળીને તે શુશુશિલક ઉડાનમા આવ્યા પ્રભુએ પ્રધાને ધર્મોને ઉપદેશ આપ્ય परिषदे धर्मोपदेश सालजीने प्रभुनी यावत् पर्युपासना री ( सेण फालेण तेण समएण ) ते जे भने ते समये (सुभा देवी चि गए रायद्राणीए सुभवडेंसए भवणे मुमसिं सीदासणसि काली गम जान नह विहिं उबद सेत्ता जान पडिगया, पुण्त्रभनपुरा सावत्थी यी को चेइए जियगत्तू राया, सुभे गाहावई, सुभसिरी भारिया, सुभा 1)१०३

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