Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 1191
________________ गरणी टीका १०२ १०४ र पदिदेवीनां चरित्रवर्णनम् ૮૨૭ वसरण= भगवतः श्री महावीरस्वामिनः समागमन सजात, यावत् परिषद् भगवन्त पर्युपास्ते । तस्मिन् काले तस्मिन् समये रूपादेवी = भूतानन्देन्द्रस्याग्रडिपी रूप कावतस के मरने रूपके सिंहासने यथा काल्या:=कालीदेव्या वर्णनं तथा तद्वत् समण्ण रायगिरे समोसरण जाय परिमा पज्जुनासह, तेण कालेन तेण समएर्ण ख्या देवी, रूयाणदा रामहाणी रूपगसि भवणे स्यगमि सीहासांसि जहा कालीए तहा नवर पुण्यभवे चपाए पुग्ण महे चेइए रुयगे गाहावर्ड रूपगमिरी मारिया, रूपा दारिया, सेस तहेव, णवर भूयाणद अभ्गमहिसित्ता उवचाओ देणं पलिओम टिई निक्खेवओ, एव सुरूवावि, रूयसावि, रूपगारावई वि रूपकना वि रूयप्पभावि, प्याओ चैव उत्तरिल्याण इदाण भाणिपव्याओ, जाव महाघोसस्स णिक्खेव चत्यवग्गस्स चडत्यो कागो ममत्तो ) प्रथम अध्ययन का है जबू । उत्क्षेपक इस प्रकार है- उसकाल में और उस समय में राजगृह नगर में महावीर स्वामी का आगमन हुआ। परिषद प्रभु को वदना करने के लिये अपने २ स्थान से निकलकर जहा प्रभु विराजमान थे वहां आई । प्रभु ने धर्म का उपदेश दिया । यावत् सनने प्रभु की पर्युपासना की। उस काल और उस समय में भृतानद इन्द्र की अग्रदेवी जिसका नाम रूपादेवी था वह प्रभु को वदना के लिये ( पढमस्स अज्झयगस्स उखाओ - एव खलु जबू ! तेण कालेग तेण समएण रायगिहे समोसरण जात्र परिसा पज्जुवासर, तेण कालेन तेण समएण रूपादेवी, रूयाणदा, रायहाणी रूयगवर्डिसए भवणे रूयगसि सीहासणसि जहा कालीए तहा नगर पुण्त्रभवे चपाए पुष्णभये चेइए स्पगे गाहावई रूपगसिरी भारिया, रूया दारिया, सेस तद्देव, णवर भूयाणद अग्गमदिसित्ताए उनवाओ देमूण पलि ओम ठिई निखेत्रओ, एव सुरूवया वि, रूयसावि, रूपगाहावई, विरूयकता विरूपभानि, एयाओ चैत्र उत्तरिल्लाण इदाण भाणियन्याओ, जाब महाघोसस्स णिक्खेओ चउत्थवग्गस्स ॥ ९ ॥ चत्थो वग्गो समत्तो ) હું જ બૂ ! પહેલા અધ્યયનના ઉલ્લેષક આ પ્રમાણે છે-તે કાળે અને તે સમયે રાજગૃહ નગરમા મહાવીર સ્વામીનુ આગમન થયુ. પ્રભુને વદના કરવા માટે પરિષદ પેાતપેાતાને સ્થાનેથી નીકળીને જ્યા પ્રભુ વિરાજમાન હતા ત્યા આવી, પ્રભુએ ધર્મના ઉપદેશ આપ્યા યાવતુ સૌએ પ્રભુની પ્યુ`પાસના કરી, તે કાળે અને તે સમયે ભૂતાન ઈન્દ્રની અગ્રદેવી ( પટરાણી ) જેનુ નામ રૂપા દેવી હતું-પ્રભુને વદના કરવા માટે આવી તેના રહેવાના ભવનનુ

Loading...

Page Navigation
1 ... 1189 1190 1191 1192 1193 1194 1195 1196 1197 1198 1199 1200 1201 1202 1203 1204 1205 1206 1207 1208 1209 1210 1211 1212 1213 1214 1215 1216 1217 1218 1219 1220 1221 1222