Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1206
________________ ८६३८ धर्मक यथा पाल्पा 'काली देव्या वर्णन तथा विनेयम्, नारम्भय विशेष: पूर्वभवे अरनगरमभस्य गाथापतेः सुरथियो भार्यायाः सूरप्रमादारिश, सूरस्य अग्रगद्दिपी स्थितिर पल्योपम पञ्चभिर्वर्षशतैरभ्यधिकम् । शेष यथा काल्या । एव शेषा अपि = आतपादिकाः देव्यो अन्या । सत्र पूर्वभवे भरपुर्या नगर्यामासन् ॥ सु०१२ ॥ ॥ इति धर्मधाना सप्तमो " गंः समाप्तः ॥ ७ ॥ का वृत्तान्त लिखा जा चुका है वैसा ही है । उसमें कुछ अन्तर नहीं है। ( णचर) परन्तु जिन नातों में अन्तर है - वह इस प्रकार है- ( पुग्वभवे ) यह पूर्वभव में (अरक्खुरीए नयरी सूरप्पभस्स गाहाबहस्स सूरसिरीए भारियाए सूरपभा दारिया सूरस्स अग्गमहिसी ठिई अद्वपलिओम पचहिं वाससएहिं अमहिय सेस जहा कालीए एव सेसाओ वि सव्वाओ अरक्खुरीए णयरी १२ ) अरक्षर नामकी नगरी में निवास करनेवाले सूरप्रभा गाधापति की सूर श्री भार्या की कुक्षि से अवतरी थी। इसका नाम सूरप्रभा था । यह सर को अग्रमहिपी हुई । इसकी वहा पांचसौ वर्ष से अधिक अर्धपत्य की स्थिति है । और इसका इस अवस्था का समस्त वर्णन काली समान ही है । इसी तरह का आतपाआदिक ३ देवियों का भी जीवन वृत्तान्त है। ये ३ तीनों ही देवियां अपने २पूर्व भव में अरक्षुर नगरी में जन्मी थी । सू०१२ ॥ - सप्तमवर्ग समाप्तः આનુ વર્ણન કાલી દેવીના વન જેવુ જ સમજી લેવુ જોઇએ, તેમા કાઇ પણ જાતના તફાવત નથી (નર) પરંતુ જે વાતમા તફાવત છે, તે આ अभाये छे ( पुत्रभवे ) मा पूर्वभवमा ( अरक्खुरीए नयरीए सूरप्यभस्म गाहावइस्स सुरसिरीए भारियाए सूरप्पभा दारिया सूरस्स अग्गमहिसी ठिई अद्धपलिभोत्रम पचर्हि वाससएहिं अमहिय सेस जहा कालीए, एव सेसाओ वि सव्याओ भरक्खुरीए जयरीए १२ ) અરક્ષરી નામની નગરીમા રહેનારી સૂરપ્રભા ગાચાપતિની સૂરશ્રીભાર્યાના ગાઁથી જન્મ પામી હતી, તેનુ નામ સૂરજપ્રભા હતુ તે સૂરની અમહિષી ( પટરાણી ) થઈ તેની ત્યા પાચસે વર્ષ કરતા વધારે અધપક્ષની સ્થિતિ છે તેનુ આ અવસ્થા વિષેતુ મધુ વધુ ત કાલીના જેવુ જ છે એ પ્રમાણે જ આતપા વગેરે ૩ દેવીઓનુ પણ જીવનવૃત્તાત છે આ ત્રણે દેવીએ પેાત માતાના પૂર્વભવમાં મરન્નુર નગરમાં જન્મ પામી હતી પસૢ૦૧૨ના સાતમે વર્ગ સમાસ Pragy

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