Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जातामेव्या ततः खलु पार्थोऽहन् पुरुषादानीयः वाली सयमेन पुष्पचूलाये आर्याय शिष्यात्वेन ददाति । ततः खलु सा पुष्पचूला आर्या पाली दारिका स्वयमेव प्रयाजयति यात्-सा काली तदागम् उपसम्पद्य सलु विहरति । ततः सा काली-आर्या जाता, कीदृशी ' त्याह-ईयोममिता यात्-गुप्तब्रह्मचारिणी । तत खलु सा काली अर्या पुष्पचूाया आर्याया अन्ति के सामायिकालनि एकादशाहानि अघीते, तणं पासे अरहा पुरिसादाणीए कालिं सयमेव पुष्फलाए अजाए सिस्सिणियत्ता दर यह, तरणमा पुष्फला अन्ना कालिदारिय सयमेव पवावेह-जाय उवसपजित्ताण विररह) हे भदत । यह लोक आदीस हो रहा है-इस प्रकार से पार्दनाय प्रभु के द्वारा स्वय ही दीक्षित की गई। इसके बाद उन पुरुपादानीय पार्श्व प्रभु ने काली को दीक्षित करके पुप्पचूला आर्या को शिप्याणीस्प से प्रदान कर दिया। पुष्पचूला आर्या ने उसे काली को इस प्रकार दीक्षित करवा कर अपनी शिष्याणीरूप में उसे स्वीकार कर लिया-यावत् वह काली उस आयो की आज्ञानुसार अपनी प्रवृत्ति करने लग गई। (तएण सा काली अन्जा जाव) इस तरह वह काली अय आर्या हो गई। (ईरिया समिया जाव गुत्तपभयारिणी तरण सा काली अजा पुप्फचूलाए अजाए अतिए
पासे अरहा पुरिसादाणीए कालिं सयमेन पुप्फचलाए अज्जाए सिस्सिणियत्ताए दलयइ, तएण सा पुष्फचूला अज्जा कालिं दारिय सयमेव पवावेइ-जाव उपसपज्जित्ताण विहरइ)
હે ભદન્ત ! આ લેન આદીત થઈ રહ્યો છે આ પ્રમાણે આ પણ પાર્શ્વનાથ પ્રભુ વડે જાતે જ દીક્ષિત કરવામાં આવી ત્યારપછી તે પુરુષાદાનીય પાર્શ્વ પ્રભુએ કાલીને દીક્ષિત કરીને પુષ્પચૂલા આર્યાને શિષ્યાના રૂપમાં આપી દીધી પુષ્પશૂવા આર્યાએ તે વાલીને આ પ્રમાણે દીક્ષિત કરાવીને પિતાની શિષ્યાના રૂપમાં તેને સ્વીક ૨ કરી લા યાવતું તે કાલી તે આર્યોની माना भुराम तानी प्रवृत्ति ४२ सासी (तण्ण सा काली अजा जाव) આ રીતે તે કાલી હવે આ થઈ ગઈ (ईरिया समिया जाव गुत्तभयारिणी, तएण सा काली अज्जा पुष्फचलाए अज्जाए अतिए समाइयमाइयाद एकफारसअगाइ अहिज्जइ, वहर्हि १७ -' विहरइ ।